
कैट सी.जी. चैप्टर प्रे.वि. क्र./03/10/2025-26 दिनांकः 14.10.2025
शास्त्रीय विधान में अमावस्या में प्रदोष काल में दिवाली पूजन हो, जो 20 अक्टूबर को ही है – कैट
Raipur chhattisgarh VISHESH देश के सबसे बड़े व्यापारिक संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय वाइस चेयरमैन एवं राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड (भारत सरकार) के सदस्य श्री अमर पारवानी, प्रदेश चेयरमेन श्री मगेलाल मालू, प्रदेश चेयरमेन श्री विक्रम सिंहदेव, प्रदेश एक्जीक्यूटिव चेयरमेन श्री जितेन्द्र दोशी, प्रदेश अध्यक्ष श्री परमानंद जैन, प्रदेश महामंत्री श्री सुरेन्दर सिंह एवं प्रदेश कोषाध्यक्ष श्री अजय अग्रवाल ने बताया कि दीपावली भारत का सबसे बड़ा पर्व है, जिसे देश भर में श्रद्धा और भक्ति भाव से मनाया जाता है। देश भर के व्यापारियों के लिए दीपावली पर्वों की श्रृंखला का विशेष महत्व है। इस वर्ष दिवाली को लेकर काफ़ी भ्रांति है और दिवाली 20 अथवा 21 अक्टूबर को मनाई जाये इसको लेकर बेहद मत विभिन्नता है। प्रत्येक भारतीय पर्व को उसकी तिथि गणना एवं धर्मशास्त्र के नियमों के अनुसार ही मनाने का शास्त्र निर्देश करता है, किंतु आधुनिक समाज में शास्त्र की जानकारी के अभाव में कई बार भ्रम उत्पन्न हो जाता है। यही कारण है कि अनेक अवसरों पर दो-दो तिथियों के चलते विवाद की स्थिति बन जाती है। इस वर्ष दीपावली की तिथि को लेकर भी इसी प्रकार की भ्रांति और असमंजस का वातावरण बना हुआ है।

कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (कैट) के राष्ट्रीय वाइस चेयरमैन एवं राष्ट्रीय व्यापारी कल्याण बोर्ड (भारत सरकार) के सदस्य श्री अमर पारवानी ने कहा कि यद्यपि शास्त्र सम्मत दीपावली मनाने का निर्णय धर्माचार्यों द्वारा किया जाना चाहिए, किंतु देश भर के व्यापारियों में बने भ्रम को दूर करने की दिशा में कैट ने अपनी वेद एवं ज्योतिष कमेटी के संयोजक तथा महाकाल की नगरी उज्जैन के प्रसिद्ध ज्योतिषाचार्य आचार्य श्री दुर्गेश तारे से इस विषय पर स्थिति स्पष्ट करने का आग्रह किया, ताकि देशभर के व्यापारियों को सही सलाह दी जा सके।
श्री अमर पारवानी ने बताया कि श्री तारे ने विक्रम संवत 2082 के दीपोत्सव पर्व के संबंध में स्वयं शास्त्रों का अध्ययन किया और देश के अन्य प्रकांड विद्वानों से विमर्श के पश्चात कहा कि -“इस वर्ष दीपावली 20 अक्टूबर को ही मनाया जाना शास्त्र सम्मत है।” उन्होंने बताया कि – “चन्द्रोदयव्यापिनी ग्राह्या तत्पूर्वदिनेव चन्द्रोदयत्याप्तौ पूर्वा।” नरकचतुर्दशी 20-10-2025 प्रातः 5 बजे अरुणोदय काल अभ्यंग स्नान, तत्पश्चात कार्तिक स्नान, यमतर्पण, दीपदान आदि करना श्रेष्ठ है।
श्री पारवानी ने आगे बताया कि श्री तारे ने कहा कि 20-10-2025, कार्तिक कृष्ण अमावस्या को प्रदोष काल में दीपावली मनाना शुभ है। शास्त्रों में दीपावली लक्ष्मी पूजन प्रदोष व्यापिनी अमावस्या के अनुसार करने का निर्देश प्राप्त होता है। इस वर्ष 20 अक्टूबर को अमावस्या तिथि प्रदोष काल में ही है तथा मध्यरात्रि व्यापिनी भी उसी दिन प्राप्त हो रही है। अतः संपूर्ण भारतवर्ष में 20 अक्टूबर को ही दीपावली मनाना शास्त्रसम्मत माना जाएगा। उन्होंने बताया कि 21 अक्टूबर को अमावस्या प्रदोष काल में केवल स्पर्श मात्र है, और वह भी एक घटिका से कम समय के लिए प्राप्त हो रही है, अतः 21 अक्टूबर को दीपावली पर्व मनाना उचित नहीं होगा। श्री तारे ने कहा कि 20 अक्टूबर को संपूर्ण रात्रि और प्रदोष काल में भी पर्वोत्सव हेतु अमावस्या होने से समस्त धर्मशास्त्रकारों ने दीपावली पर्व 20 अक्टूबर को ही मनाने का निर्देश दिया है।
उन्होंने कहा – “प्रदोषार्द्धव्यापिनीमुख्या” अर्थात जो अमावस्या प्रदोष और अर्धरात्रि दोनों में व्याप्त हो, वही मुख्य होती है। यदि दोनों ही दिन काल में हों तो बाद वाली मानी जाती है। दीपावली पूजन हेतु प्रदोष काल समय मुख्य है। अर्धरात्रि में कोई मुख्य अनुष्ठान विधान आदि सकाम है, इस प्रकार प्रदोष व्यापिनी मुख्य काल होने से सिद्ध होता है कि अन्य सभी कर्म गौण हैं, जो मुख्य के भाव में ही लिए जा सकते हैं। श्री तारे ने आगे बताया कि प्रदोष व्यापिनी होने के कारण कार्तिक कृष्ण धन त्रयोदशी और धनवंतरी जयंती 18-10-2025 को ही मनाई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि वेद में कहा गया है – “कार्तिकेकृष्ण पक्षे त्रयोदश्यां गुरोर्दिने। हस्त नक्षत्र संयुक्ते यामे प्राथमिके निशि। धन्वंतर्याख्यया चाहं धनंगुप्तमिवादते। अवतीर्णोयतस्तस्मात् सा तिथि सर्वकामदा।” अर्थात भगवान धन्वंतरि का प्रादुर्भाव इस शास्त्रीय प्रमाण से रात्रि के प्रथम प्रहर अर्थात प्रदोष काल में हुआ है। अतः यह सारा योग 18 अक्टूबर 2025 को होने से उसी दिन धन त्रयोदशी एवं धनवंतरी जयंती शास्त्रीय विधि से मान्य है।
श्री पारवानी ने आगे बताया कि श्री तारे ने कहा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी दिनांक 19-10-2025 को सायंकाल यम दीपदान आदि कार्य किया जाना चाहिए। श्री तारे ने कहा कि दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पर्व मनाया जाता है, जो प्रतिपदा अमावस्या युक्त होना चाहिए। उसमें कहा गया है – “प्रतिपत्संमुखी कार्या या भवेदपराह्निकी।” अर्थात गोवर्धन पूजन के दिन प्रतिपदा होना चाहिए, जो 21 तारीख को नहीं हो रही है। इसलिए 22 अक्टूबर को गोवर्धन पूजा मनाई जानी चाहिए। निर्णय सिंधु में कहा गया है – “प्रातर्गोवर्धनं पूजयेत्।” अर्थात प्रातःकाल में गोवर्धन पूजन होना चाहिए और उसी दिन अन्नकूट व गौ पूजन करना शास्त्र सम्मत है। श्री तारे ने बताया कि भाई दूज निर्विवाद रूप से 23 अक्टूबर को ही मनाई जानी चाहिए, तथा कार्तिक शुक्ल एकादशी – 1 नवम्बर 2025 को देव प्रबोधिनी एकादशी (देव उठनी एकादशी) पर्व मनाना शास्त्र सम्मत है।
धन्यवाद
सुरिंदर सिंह
प्रदेश महामंत्री
7000147979