इंदौर में सिंधी समाज के मंदिरों और संतों के डेरों में दशकों से रखी गुरु ग्रंथ साहिब की प्रतियाँ गुरु सिंह सभा को सौंपी जा रही : सिंधी भाइयों ने कहा हम माहौल बिगाड़ना नहीं चाहते, सिख हमारे भाई है
Report manpreet singh
Raipur chhattisgarh VISHESH : मध्य प्रदेश के इंदौर में सिंधी समाज के मंदिरों और संतों के डेरों में दशकों से रखी गुरु ग्रंथ साहिब की प्रतियाँ गुरु सिंह सभा को सौंपी जा रही हैं. ये फ़ैसला एक विवाद के बाद हुआ और ये विवाद तेज़ी से फैलता भी चला गया. सिंधी समाज ने कुल मिलाकर विभिन्न मंदिरों और डेरों से गुरु ग्रंथ साहिब की 90 प्रतियाँ सिखों के हवाले कर दी हैं.
सिंधी समाज का कहना है कि सारा विवाद तब शुरू हुआ जब शहर के राजमहल के इलाक़े में कुछ लोग एक घर में पहुँचे जहाँ गुरु ग्रंथ साहिब की प्रतियाँ रखी थीं. कुल दस हथियारबंद लोग थे जो वेशभूषा से निहंग लग रहे थे, उन्होंने वहाँ रखे ग्रंथ साहिब की ‘बेअदबी’ का आरोप लगाया और उनसे मर्यादा का पालन करने के लिए कहा.
इस घटना का एक वीडियो सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गया जिसमे वहाँ मौजूद लोगों और ‘निहंग जैसे दिखने’ वाले लोगों के बीच तीखी नोक-झोंक हुई. निहंग जैसी वेश भूषा में आए लोगों की पहचान सामने नहीं आई है. ये विवाद और ज्यादा तब गहराया जब ‘निहंग’ दल के लोगों ने इंदौर के पुलिस डीआईजी एक को ज्ञापन सौंपा और आरोप लगाया कि सिंधी समाज के सभी मंदिरों और संतों के डेरों में रखे गुरु ग्रंथ साहिब जी को जिस तरह रखा जाना चाहिए था वैसा नहीं है जिससे इस पवित्र ग्रंथ की ‘बेअदबी’ हो रही है और ‘इससे सिखों की भावनाएं आहात हो रही हैं.’
इंदौर के सिंधी समाज के लोगों ने कहा, “जो लोग राजमहल के डेरे में आए थे उन्होंने वहाँ रखी मूर्तियों पर आपत्ति जताई थी. उनका आरोप था कि जो लोग आए थे वो कह रहे थे कि वो अमृतसर से आए हैं और उन्होंने ये भी कहा कि मंदिरों में मूर्तियाँ हैं और सिख समाज मूर्ति पूजा नहीं करता इसलिए मंदिर में गुरु ग्रंथ साहिब जी का होना उनकी धार्मिक मर्यादा के खिलाफ़ है.” वो लोग कौन थे उन्होंने अपना परिचय नहीं बताया. सिर्फ़ इतना कहा कि वो अमृतसर से आए हैं. उन्होंने कहा कि या तो यहाँ से मूर्तियाँ हटा दो या फिर जो गुरु ग्रंथ साहिब यहाँ विराजमान हैं उन्हें स्थानीय गुरुद्वारे पहुँचा दो.
सिंधी समाज के लोग इस घटना से भयभीत हो गए थे और उन्होंने संतों से संपर्क किया. जल्दबाज़ी में सिंधी संतों की बैठक बुलाई गई और समाज ने स्थानीय गुरुद्वारा और स्थानीय गुरु सिंह सभा के पदाधिकारियों के संपर्क किया.
इंदौर की गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष सरदार मंजीत सिंह भाटिया ‘रिंकू’ ने बताया कि , “शिकायतें मिल रहीं थीं कि गुरु ग्रंथ साहब सिंधी मंदिरों में और संतों के डेरों में विराजमान ज़रूर हैं. मगर अमृतसर से आए धर्म सत्कार कमेटी के सदस्यों ने जाँच में पाया कि जिन-जिन स्थानों पर गुरु ग्रंथ साहिब जी को स्थापित किया गया है, उन जगहों पर इस पवित्र ग्रंथ की मर्यादा की अनदेखी हो रही है.”
भाटिया कहते हैं, “सिंधी समाज गुरु नानक देव जी महाराज से 500 सालों से जुड़ा हुआ है. ये सही है कि उनकी आस्था सिखों के पवित्र ग्रंथ पर अटूट है लेकिन जो गुरु ग्रंथ साहिब इन मंदिरों और डेरों में मौजूद हैं वो बहुत पुराने, हस्तलिखित हैं और उनके कागज़ भी गलने लगे हैं. जगह-जगह पर मंदिरों और डेरों में देखा गया है कि उनकी लिखाई मिट रही है और गुरु ग्रंथ साहिब के ऊपर से हाथ से आकृतियाँ भी बनी हुईं हैं. ऐसा करना अकाल तख़्त और सत्कार कमेटी के नियमों के खिलाफ़ है”.
भाटिया ये भी कहते हैं कि ऐसा ग्रंथ साहिब की अवमानना करने के लिए नहीं, बल्कि आस्था की वजह से ही किया गया होगा, लेकिन ऐसा करना तय मर्यादा के प्रतिकूल है. वहीं इंदौर के ही गुरु सिंह सभा के सचिव सुरजीत सिंह टुटेजा बातचीत के क्रम में बताते हैं कि अकाल तख़्त ने स्पष्ट रूप से तय कर दिया गया है कि जहाँ गुरु ग्रंथ साहिब जी की स्थापना होगी वहाँ उनका आसन क्या होगा, वो हमेशा ऊंचा स्थान होगा. इसके साथ ही पवित्र ग्रंथ को लाने-ले जाने और स्थापित करने के लिए पालकी और चंदा साहिब का क्या स्थान होगा, ये सब तय है.
वो कहते हैं, “पाया गया कि एक एक घर में गुरु ग्रंथ साहिब की 11 से 12 प्रतियाँ रखी हुईं हैं. जिसमें उनके ‘आसन और मर्यादा’ का ‘ध्यान नहीं रखा गया है’ इसलिए अमृतसर स्थित शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी की ‘धर्म प्रचार समिति’ को इसकी सूचना दी गई थी.”
अमृतसर से भी शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य इंदौर पहुँचे और उन्होंने स्थानीय सिंधी समाज के संतों और लोगों से विचार-विमर्श किया जिसके बाद संतों की सहमति से तय हुआ कि लगभग 90 प्रतियाँ गुरु सिंह सभा को गुरुद्वारा इमली साहिब में जमा कर दी जाएँगी. ऐसा ही हुआ. सिंधी समाज के लोगों ने पत्र लिखकर गुरु सिंह सभा से अनुरोध किया कि वो गुरु ग्रंथ साहिब को अपनी हिफाज़त में ले लें. सभा ने भी सभी प्रतियां प्राप्त करने के बाद समाज को इसकी चिठ्ठी भी सौंप दी.
मंजीत सिंह भाटिया कहते हैं कि जो गुरु ग्रंथ साहिब की प्रतियां उन्हें सौंपी गई हैं उनमें 70 ऐसी हैं जो हस्तलिखित हैं और उनके रख-रखाव का घोर अभाव है. वो कहते हैं कि किसी-किसी में टेप से चिपकाए गए पृष्ठ हैं, कहीं उन पर हाथों से लिखा हुआ है, तो कहीं चिप्पियाँ वहाँ लगायीं गई हैं जहाँ शब्द मिट चुके हैं. वो कहते हैं, “इसको इस तरह समझा जा सकता है कि सत्कार समिति निरिक्षण करती है और अपनी रिपोर्ट अकाल तख्त को सौंपती है. वो तय करती है कि गुरु ग्रंथ साहिब को मर्यादा का पालन करते हुए स्थापित किया गया है या नहीं.
हालांकि सिर्फ़ अधिकृत लोग ही इसका निरिक्षण करते हैं. मगर ये पता नहीं चल पाया है कि जो लोग पहले दिन डेरे में घुसे थे वो अधिकृत थे या नहीं. इस पर भाटिया कहते हैं कि कुछ नौजवानों ने जोश में ज़रूर काम किया मगर हालात को फ़ौरन संभाल लिया गया. सिंधी समाज के प्रमुख स्वामी गुरुचरण दास ने माहौल को संभालते हुए गुरु सिंह सभा के अध्यक्ष को पत्र लिखा और प्रतियां सौंपने की पेशकश की. पत्र के जवाब में इंदौर के गुरु सिंह सभा के महासचिव सरदार जसबीर सिंह गांधी ने सिंधी गुरु, स्वामी गुरुचरणदास उदासी जी, को पत्र लिखा और कहा, “आपके द्वारा श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज की निर्धारित विधि को पूर्ण रूप से पालन करने में असमर्थ होने के कारण सभी सिंधी संतों ने निर्णय लिया है कि गुरु ग्रंथ साहिब जी महाराज के स्वरुप साहिब को वापिस करने के लिए आप निर्धारित स्थान बताएँ. आपसे निवेदन है कि आप ऐतिहासिक गुरुद्वारा इमली साहिब में महाराज के पावन स्वरुप साहिब दिनांक 12 जनवरी तक लेकर आने की व्यवस्था करें एवं मैनेजर से प्राप्ति लेकर जाएँ.”
बस इसके बाद सिंधी समाज ने अपने सर पर गुरु ग्रंथ साहिब के स्वरुप को उठाकर गुरुद्वारे में जमा करना शुरू कर दिया और उसकी रसीद हासिल की. सिंधी समाज के प्रबुद्ध कर्ताधर्ता राजदेव जी प्रकाश ने बीबीसी से बात करते हुए कहा, “जो कुछ हुआ है उससे उनका समाज बहुत आहत महसूस कर रहा है. वो कहते हैं कि इतने दशकों से उनके पूर्वज गुरु ग्रंथ साहिब को मंदिरों और डेरों में स्थापित करते आए हैं और वो अरदास करते आ रहे हैं.
राजदेव जी प्रकाश बताते हैं कि उनके समाज के लोग पाकिस्तान में भी रहते हैं. पहले सब पकिस्तान में ही थे और वहीं से यहाँ आए हैं. उनका कहना था कि गुरु नानक के जीवनकाल से ही उनके समाज के लोग गुरुनानक देव जी से जुड़े रहे थे. तब से ही वे गुरु नानकदेव और श्री गुरुग्रंथ साहिब को भी मानते आ रहे हैं. राजदेव कहते हैं कि ख़ुद को निहंग कहने वाले ‘बगैर किसी सूचना’ के अवैध तरीक़े से साईं अनिल महाराज और पूनम दीदी के पार्श्वनाथ कालोनी और राजमहल कालोनी स्थित दरबारों में जबरन घुस गए. इससे तनाव की स्थिति बन गई.
राजदेव बताते हैं कि आज भी पकिस्तान के सिंध में उनके समाज के जितने भी हिंदू मंदिर हैं और संतों के दरबार हैं, सबमें गुरु ग्रंथ साहिब जी की स्थापना है. उन्होंने कहा हम माहौल बिगाड़ना नहीं चाहते. सिख हमारे भाई हैं. सिंधी समाज से भी एक लड़के के सिख बनने की परंपरा आज भी चल रही है. हम आपस में मन-मुटाव नहीं चाहते हैं इसलिए हमने गुरु ग्रंथ साहिब जी की प्रतियाँ गुरु सिंह सभा को सौंप दी हैं. राजदेव के साथ शिरोमणि गुरुद्वारा प्रभंधक कमेटी के अमृतसर से आए प्रतिनिधियों की बैठक हुई और ये भी तय किया गया कि गुरु ग्रंथ साहिब को सिंधी समाज के संत अपने डेरों में स्थापित करना चाहते हैं तो उन्हें सत्कार और मर्यादा समिति के मानदंडों को ही अपनाना होगा.
वैसे सिख समाज में भी एक बड़ा तबक़ा है जो कुछ इस बात से नाराज़ है कि ख़ुद को ‘निहंग’ बोलने वालों ने सिंधी दरबारों में जाकर ग़लत किया है. उन्होंने इस पर ‘नाराज़गी’ भी ज़ाहिर की है.भोपाल के गुरु सिंह सभा के मंजीत सिंह ने बात करते हुए अकाल तख़्त का हवाला दिया और कहा कि अकाल तख़्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने निर्देश जारी कर स्पष्ट रूप से कहा है कि ‘किसी को भी अधिकार नहीं है वो किसी के घरों में घुस जाए और और छवियों या प्रतियों को ख़ुद से हटाने का काम करे.’ वो कहते हैं कि इससे श्री अकाल तख़्त साहिब की मर्यादा को ठेस पहुँचती है. बाद में सिंधी समाज, इंदौर की शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटी और गुरु सिंह सभा के प्रतिनिधियों ने मिलकर माहौल को शांत करने की कोशिश की और तय किया कि जिन डेरों में गुरु ग्रन्ध साहिब को मर्यादित ढंग से रखने की व्यवस्था सुनिश्चित होगी वहाँ पर उनको धार्मिक रीति रिवाजों के साथ दोबारा स्थापित किया जाएगा.