
Posted On: 08 SEP 2025 11:42AM by PIB Raipur

कानून, प्रौद्योगिकी और मानवाधिकारों के संगम पर हिदायतुल्लाह नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एचएनएलयू), रायपुर ने एक दिवसीय ऑनलाइन राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया। “डिजिटल गरिमा: प्रौद्योगिकी के युग में मानवाधिकारों की सुरक्षा” विषय पर केंद्रित इस सम्मेलन में देशभर से बड़े पैमाने पर भागीदारी हुई और डिजिटल क्रांति के दौर में मानवाधिकारों की रक्षा के सवाल को केंद्र में रखा गया।
सम्मेलन में लगभग 150 शोध-सारांश प्राप्त हुए, जिनमें से 60 को प्रस्तुतिकरण के लिए चुना गया। आठ समानांतर तकनीकी सत्रों में प्रख्यात विधिवेत्ता, शिक्षाविद, शोधार्थी और छात्र-छात्राओं ने डेटा गोपनीयता, एल्गोरिथमिक पक्षपात, डिजिटल स्वास्थ्य, निगरानी और भ्रामक सूचनाओं जैसे गंभीर मुद्दों पर विचार-विमर्श किया।
उद्घाटन सत्र में असम मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष, एचएनएलयू के पूर्व कुलाधिपति और छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के पूर्व मुख्य न्यायाधीश माननीय न्यायमूर्ति अरुप कुमार गोस्वामी ने मुख्य वक्ता के रूप में संबोधित किया। न्यायमूर्ति गोस्वामी ने गरिमा को 1948 की सार्वभौम मानवाधिकार घोषणा से मानवाधिकार न्यायशास्त्र का मूल स्तंभ बताते हुए तकनीकी क्रांति के बीच इसके नए संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होंने इस विषय पर विमर्श आयोजित करने के लिए एचएनएलयू की सराहना भी की।
एचएनएलयू के कुलपति प्रो. (डा.) वी.सी. विवेकानंदन ने अपने संबोधन में कहा कि अधिकार-आधारित तकनीकी डिज़ाइन, न्यायिक नवाचार और अंतरराष्ट्रीय सहयोग आज मानवाधिकार-तकनीकी विमर्श के प्रमुख स्तंभ हैं। स्वागत भाषण रजिस्ट्रार (कार्यवाहक) डा. दीपक कुमार श्रीवास्तव ने दिया, जबकि सम्मेलन के उद्देश्यों की रूपरेखा डा. देबमिता मोंडल, प्रमुख, सेंटर फॉर लॉ एंड साइंस, ने प्रस्तुत की। धन्यवाद ज्ञापन डा. किरण कोरी, प्रमुख, सेंटर फॉर ह्यूमन राइट्स ने किया।
समापन सत्र में प्रो. परमजीत सिंह जसवाल, कुलपति, एसआरएम विश्वविद्यालय (सोनीपत) एवं एचएनएलयू के डिस्टिंग्विश्ड ज्यूरिस्ट प्रोफेसर ने पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ और श्रेया सिंघल बनाम भारत संघ जैसे ऐतिहासिक फैसलों का विश्लेषण करते हुए मानवाधिकार और तकनीक के अंतर्संबंध की जांच के लिए सात प्रमुख पैमानों की रूपरेखा प्रस्तुत की। उन्होंने कहा कि संवैधानिक मूल्यों को सर्वोपरि मानना होगा और किसी भी युग में मानवाधिकार समझौते योग्य नहीं हैं।
अपने समापन संबोधन में कुलपति प्रो. विवेकानंदन ने कहा कि इतिहास में तकनीक हमेशा विघटनकारी रही है, लेकिन कानून ने स्थिरता प्रदान की है। उन्होंने चेताया कि यदि तकनीक की अपारदर्शिता, जवाबदेही की कमी और दुरुपयोग को रोका नहीं गया तो यह मानवाधिकारों की वर्षों की संघर्षपूर्ण उपलब्धियों को कमजोर कर सकता है।
छात्र-छात्राओं के सुगठित संचालन में सम्पन्न हुए इस सम्मेलन का समापन विस्तृत प्रतिवेदन के साथ डा. किरण कोरी ने किया और धन्यवाद ज्ञापन छात्र संयोजिका आयुष्का पांडेय ने दिया। सम्मेलन ने स्पष्ट संदेश दिया कि डिजिटल क्रांति के इस दौर में मानवाधिकारों की रक्षा सर्वोपरि चुनौती है।