हाईकोर्ट ने चयन सूची पर सुनाया फैसला हाईकोर्ट ने की सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2017 की संशोधित चयन सूची भी रद्द
रिपोर्ट मनप्रीत सिंह
रायपुर छत्तीसगढ विशेष : अतिथि विद्वानों को बड़ी राहत की उम्मीद, हाईकोर्ट ने चयन सूची पर सुनाया फैसला हाईकोर्ट ने की सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2017 की संशोधित चयन सूची भी रद्द। सरकारी नौकरियों में हो रहे फर्जीवाड़े व अनियमितता के लिए प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश में चर्चित रहे मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग द्वारा आयोजित सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा 2017 एक बार फिर से चर्चाओं में है। ताज़ा घटनाक्रम में माननीय उच्च न्यायालय जबलपुर ने सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा की संशोधित चयन सूची को एक बार फिर से निरस्त कर दिया है और दो माह में नई संशोधित चयन सूची फिर से जारी करने संबंधी आदेश जारी किया है। अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के प्रवक्ता डॉ. मंसूर अली ने कहा है कि हम लगातार इस भर्ती परीक्षा में हुए कथित फर्जीवाड़े, धांधली, जाली दस्तावेजों व आरक्षण रोस्टर की लगातार जांच की मांग करते आये हैं। माननीय उच्च न्यायलय की ताजा आदेश से हमारी इस मांग को बल मिला है कि इस परीक्षा की चयन सूची का लगातार दूसरी बार न्यायालय द्वारा निरस्त किया जाना यह स्पष्ट करता है कि दाल में केवल काला ही नहीं बल्कि पूरी दाल ही काली है। अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा वर्तमान आदेश के प्रकाश में एक बार फिर सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा को निरस्त करने की मांग सरकार से करता है। अतिथिविद्वान लगातार इस परीक्षा में हुई धांधली की जांच की मांग करते आये है, किन्तु पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने जांच का वादा करने के बाद भी सत्ता में आते ही बिना जांच के ही नियुक्तियां प्रारम्भ कर दी और मामला कोर्ट में चला गया था। अब हाईकोर्ट के इस ताज़ा आदेश से पसोपेश की स्थिति निर्मित हो गई है। Also Read – सहायक प्राध्यापक परीक्षा 2017 की संशोधित चयन सूची फिर से निरस्त अतिथि विद्वानों की मिल सकती है बड़ी राहत अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्रभारी डॉ. जेपीएस चौहान के अनुसार माननीय उच्च न्यायालय के ताज़ा आदेश से अतिथिविद्वानों को भी बड़ी राहत की उम्मीद है। हम सरकार से मांग करते है कि इस परीक्षा की उच्च स्तरीय जांच करवाकर सरकार समस्त नियुक्तियों को रद्द करें। चूंकि सभी नियुक्तियां पूर्व से उच्च न्यायलय के निर्णय के अधीन है। इसलिए सरकार अविलंब सभी नियुक्तियों को रद्द करते हुए सम्पूर्ण भर्ती परीक्षा की किसी स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवाएं।अतिथि विद्वानों की सेवा में वापसी करे जिससे कोरोना संकटकाल में उच्च शिक्षा का काम भी सुचारू रूप से चल सके। परीक्षा विज्ञापन में ही थी कई त्रुटियाँ विगत दो दशकों से न्यायालय में अतिथि विद्वानों की कानूनी लड़ाई लड़ने वाले अतिथि विद्वान डॉ. गिरिवर सिंह की माने तो इस सहायक प्राध्यापक परीक्षा के विज्ञापन में ही कई त्रुटियाँ थी। उच्च शिक्षा विभाग ने बिना रोस्टर पंजी के ही विज्ञापन जारी कर दिया था। यही नहीं विभाग के पास स्वीकृत पदों एवं बैकलॉग की स्पष्ट जानकारी भी नहीं थी। उच्च न्यायालय के हालिया फैसले से यह स्पष्ट होता है कि महिला आरक्षण ही नहीं बल्कि सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा की सम्पूर्ण भर्ती प्रक्रिया ही संदेह के घेरे में है। चूँकि सरकार ने सहायक प्राध्यापकों के नियुक्ति पत्र में स्पष्ट किया था कि ये नियुक्ति उच्च न्यायालय के आदेश के आधीन है अतः अब इन्हें बाहर करने का रास्ता भी साफ हो गया है। सरकार यदि चाहे तो पारदर्शिता हेतु सभी नियुक्ति पत्रों को निरस्त कर जांच उपरांत नए नियुक्ति पत्र जारी कर सकती है। अतिथि विद्वानों ने पुनः नियमितीकरण की मांग उठाई अतिथि विद्वान नियमितीकरण संघर्ष मोर्चा के मीडिया प्राभारी डॉ. आशीष पांडेय ने कहा है कि पूरे देश मे कथित फर्जीवाड़े के नाम पर कुख्यात हो चुकी इस सहायक प्राध्यापक भर्ती परीक्षा को निरस्त करके सरकार को सभी कार्यरत अतिथि विद्वानों का अविलंब नियमितीकरण किया जाना चाहिए। यह परीक्षा लगातार अपनी धांधलियों के कारण के चर्चा में रही है। यही नहीं लगभग 1500 अतिथि विद्वान जो इस परीक्षा के बाद हुई नियुक्तियों के कारण फालेन आउट होकर बेरोजगार हो चुके है, सरकार अविलंब फालेन आउट अतिथि विद्वानों को फिर से अतिथि विद्वान व्यवस्था में शामिल करें।