
Report manpreet singh
Raipur chhattisgarh VISHESH घर, समाज, राज्य और राष्ट्र में शांति चाहते हो तो सुनाने के साथ सुनने का भी सामर्थ्य लाओ। ज्यादातर लोग केवल अपनी सुनाते हैं, अपने को ही समझदार, सर्वश्रेष्ठ समझते हैं, दूसरों की नहीं सुनते। झगड़ा यहीं से प्रारंभ होता है।झगड़ा न हो इसलिए सुनने की आदत डालें। जीवन को सफल बनाना हो तो गुरु की बातों को ध्यान से सुनें। उक्त विचार फाफाडीह दिगंबर जैन मंदिर में आचार्य विशुद्ध सागर महाराज ने व्यक्त किए। कमरे में बैठकर बातें सुनना बुद्धि को भ्रष्ट करना होता है।कुछ लोग कमरे में बैठाकर ही बातें करते हैं। चार आदमी जब आपको घेरते हैं, कमरे में बैठाकर कंधे पर हाथ रखकर बातें करते हैं, समझ लेना तुम्हारी बुद्धि भ्रष्ट होने का समय आ गया है।

बंधन में पड़ने से विशालता नष्ट हो जाती है। कोई हाथ पकड़ कर कंधे में हाथ रखकर बात करें, तुम समझ लेना फंसने वाले हो।कभी-कभी संज्ञाओं से भी समझ में नहीं आता है। संज्ञा अर्थात नाम। एक संज्ञा के चार लोग बैठे हैं तो विशेषण लगाना पड़ता है। संज्ञा नहीं दी और विशेषण जोड़ दिया तो संशय होगा। संज्ञा का प्रयोग नहीं करोगे तो विशेषण काम नहीं आएंगे। शब्द और ज्ञान के अभाव में अर्थ का अनर्थ जीव करता है।मुनि प्रणेय सागर ने कहा कि हमने जैसे कर्म किए हैं, उसका परिणाम झेलना पड़ेगा।
पता कैसे चले कि जो कर रहे हो सत्य है या असत्य। उससे पुण्य का बंध होगा या पाप का। मार्ग कौन सा सही है, कौन सा गलत है। इसके लिए पहले अपने आपको जानें। जीवन में लक्ष्य होना चाहिए। यदि है तो आप उसे प्राप्त कर सकते हो। यदि नहीं है, तो जीवन में कहां जाओगे।
















