पांच सालों में हिरासत में दुष्कर्म के कुल 270 से अधिक मामले दर्ज : नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो ने 2017 से 2022 तक के दुष्कर्म के कुछ आंकड़े पेश किए, इसके अलावा दर्ज नहीं होते कई मामले
Report manpreet singh
Raipur chhattisgarh VISHESH : नई दिल्ली , नेशनल क्राइम रिकॉड्र्स ब्यूरो ने 2017 से 2022 तक के दुष्कर्म के कुछ आंकड़े पेश किए हैं। आंकड़ों के मुताबिक, इन पांच सालों में हिरासत में दुष्कर्म के कुल 270 से अधिक मामले दर्ज किए गए। एक महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने ऐसे मामलों के लिए कानून प्रवर्तन प्रणालियों के भीतर संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को जिम्मेदार ठहराया। महिलाओं के प्रति अपराधों में लगातार बढ़ोतरी होती जा रही है। सरकार महिलाओं की सुरक्षा को लेकर लाख दावे करती है, लेकिन फिर भी अपराधियों के दिल में कोई भी खौफ घर नहीं कर सका। खौफ होगा भी कैसे, जब अपराधियों को सजा देने वाले भी गुनहगार हों।
एनसीआरबी के आंकड़ों के अनुसार, अपराधियों में पुलिसकर्मी, लोक सेवक, सशस्त्र बलों के सदस्य के अलावा जेलों, सुधार गृहों, हिरासत स्थलों एवं अस्पतालों के कर्मचारी भी शामिल हैं। महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इन घटनाओं के लिए कानून प्रवर्तन प्रणालियों में संवेदनशीलता और जवाबदेही की कमी को जिम्मेदार बताया है। आंकड़ों के अनुसार, 2017 में 89 में मामले दर्ज किए गए थे, जो 2018 में घटकर 60 रह गए। वहीं, साल 2019 में 47, 2020 में 29, 2021 में 26 और 2022 में 24 मामले सामने आए। इन आंकड़ों से यह तो साफ है कि पिछले कुछ वर्षों में ऐसे मामलों में धीरे-धीरे कमी आई है।
हिरासत में दुष्कर्म के मामले भारतीय दंड संहिता की धारा 376(2) के तहत दर्ज किए जाते हैं। अगर हम बात करें कि किस राज्य में महिलाओं के साथ हिरासत में सबसे ज्यादा बदसलूकी की गई है, तो उसमें उत्तर प्रदेश सबसे ऊपर है। यहां 2017 से 2022 के बीच 92 मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं, इसके बाद मध्य प्रदेश दूसरे स्थान पर रहा। यहां 43 मामले दर्ज कराए गए हैं। पॉपुलेशन फाउंडेशन ऑफ इंडिया की कार्यकारी निदेशक पूनम मुत्तरेजा ने कहा कि हिरासत व्यवस्था दुव्र्यवहार के लिए ऐसे अवसर प्रदान करती है,
जहां सरकारी कर्मचारी अक्सर अपनी शक्ति का इस्तेमाल यौन इच्छा पूरी करने के लिए करते हैं। ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां महिलाओं को उनके संरक्षण या उनकी कमजोर स्थिति जैसे तस्करी या घरेलू हिंसा के कारण हिरासत में लिया गया और उनके साथ यौन हिंसा की गई, जो प्रशासनिक संरक्षण की आड़ में शक्ति के दुरुपयोग को दर्शाता है।
मुत्तरेजा ने कहा कि दुष्कर्म के ऐसे कारणों में पितृसत्तात्मक सामाजिक मानदंड, अधिकारियों द्वारा सत्ता का दुरुपयोग, पुलिस के लिए लिंग-संवेदनशीलता प्रशिक्षण की कमी और पीडि़तों से जुड़ा सामाजिक कलंक शामिल हैं। उन्होंने कहा कि ये तत्व ऐसे माहौल में योगदान करते हैं, जहां इस तरह के जघन्य अपराध हो सकते हैं। यहां तक कि कई मामलों में तो रिपोर्ट ही नहीं की जाती या उन पर ध्यान नहीं दिया जाता। उन्होंने कहा कि पुलिस स्टेशनों में हिरासत में दुष्कर्म एक बहुत ही आम बात है।
जिस तरह से जूनियर पुलिस अधिकारी, यहां तक कि महिला कांस्टेबल भी पीडि़ताओं से बात करते हैं, उससे पता चलता है कि उनके मन में उनके लिए कोई सहानुभूति नहीं है। उन्होंने अपराधियों को जवाबदेह ठहराने के लिए कानूनी तंत्र के साथ-साथ पुलिसकर्मियों के बीच संवेदनशीलता और जागरूकता की महत्वपूर्ण आवश्यकता पर जोर दिया l