स्नातक, स्नातकोत्तर, फर्स्ट और सेकेंड ईयर की परीक्षा लेने के लिए विश्वविद्यालय स्वतंत्र, सुप्रीम कोर्ट ने कहा…विवि अगर परीक्षाएं कराना चाहते हैं तो हम रोक नहीं सकते

Report manpreet singh 

Raipur chhattisgarh VISHESH : नई दिल्ली, फाईनल ईयर की परीक्षा पर सख्त रूख अपनाने वाले सुप्रीम कोर्ट ने गुरूवार को कहा कि स्नातक और स्नातकोत्तर की फस्र्ट और सेकेंड ईयर की परीक्षा आयोजित करने पर रोक नहीं लगाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विश्वविद्यालय स्नातक (अंडर ग्रेजुएट) और स्नातकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएट) कोर्सेज के फर्स्ट व सेकेंड ईयर स्टूडेंट्स को अगले ईयर में प्रमोट करने को लेकर परीक्षा कराने के लिए स्वतंत्र है। जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की पीठ ने कहा, “विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने फर्स्ट और सेकेंड ईयर की परीक्षाएं कराने का फैसला विश्वविद्यालयों के विवेक पर छोड़ दिया है। अगर विश्वविद्यालय परीक्षाएं आयोजित करना चाहते हैं, तो हम उन्हें रोक नहीं सकते। यह न्यायिक समीक्षा का आधार नहीं है।”

शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी तब कि जब वह फर्स्ट व सेकेंड ईयर की परीक्षा कराने के विरोध में दायर एक याचिका पर सुनवाई कर रही थी। आयुष येसुदास नाम के एक छात्र द्वारा दायर याचिका में कहा गया था कि 27 अप्रैल 2020 को जारी यूजीसी की गाइडलाइंस में यह कहा गया था कि अंडर ग्रेजुएट/पोस्ट ग्रेजुएट कोर्सेज के फर्स्ट व सेकेंड ईयर स्टूडेंट्स का मूल्यांकन पूरी तरह उनके इंटरनल असेसमेंट के आधार पर होगा न कि परीक्षा कराकर। यूजीसी ने यह फैसला देश में बढ़ते कोविड-19 संक्रमण के बढ़ते मामलों के मद्दनेजर लिया था।’ कोर्ट ने कहा, ‘यह मामला 14 अगस्त के फैसले में निपटा दिया गया है जिसमें यूजी/पीजी कोर्सेज की फाइनल ईयर की परीक्षाएं अनिवार्य तौर पर कराने की यूजीसी की 6 जुलाई की गाइडलाइंस को सही ठहराया गया है। उसी समय विश्वविद्यालयों को यह स्वतंत्रता भी दी गई है कि वह पिछले वर्षों के छात्रों को प्रमोट करने के लिए परीक्षाएं करवा सकते हैं।’

27 अप्रैल की यूजीसी गाइडलाइंस में कहा गया है, ‘इंटरमीडिएट सेमेस्टर/ईयर के स्टूडेंट्स के लिए विश्वविद्यालय अलग-अलग क्षेत्रों व राज्यों में कोविड-19 महामारी की स्थिति का जायजा लेकर और स्टूडेंड्स की आवासीय स्थिति को ध्यान में रखकर अपने स्तर पर तैयारी का व्यापक मूल्यांकन करने के बाद परीक्षा आयोजित कर सकते हैं। अगर हालात सामान्य नहीं होते हैं तो स्टूडेंट्स की हेल्थ को सर्वोच्च प्राथमिकता मानते हुए उन्हें 50 फीसदी मार्क्स यूनिवर्सिटी के इंटरनल इवेल्यूएशन के आधार पर और शेष 50 फीसदी मार्क्स पिछले वर्षों के सेमेस्टर (अगर उपलब्ध है तो) में प्रदर्शन के आधार पर दे सकते हैं।

याचिकाकर्ता ने यूजीसी की इस गाइडलाइंस को रेखांकित करते हुए कहा, ‘कोविड-19 की स्थिति अभी खत्म नहीं हुई है। हालात सामान्य नहीं हुए हैं। ऐसी स्थिति में परीक्षाएं करना यूजीसी की गाइडलाइंस का उल्लंघन है।’पीठ ने याचिका खारिज करते हुए कहा, ‘अदालत हर कॉलेज में परीक्षाओं की निगरानी करना शुरू नहीं कर सकती। परीक्षा आयोजित करना यूजीसी की गाइडलाइंस का उल्लंघन नहीं है।

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