मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने सौरभ सागर द्वार का किया लोकार्पण
दीक्षा उपरांत जैन आचार्य सौरभ के 28 वर्षों पश्चात वर्ष 2012 में जशपुर आगमन के समय उनके द्वारा प्रवेश द्वार की रखी गई थी नींव
जैन धर्म के संत सौरभ सागर के नाम पर निर्मित इस प्रवेश द्वार का लोकार्पण जशपुर के माटी पुत्र मुख्यमंत्री श्री साय के हाथों होने पर नगरवासियों में छाई खुशी की लहर
हेलीपैड से खुली गाड़ी में सवार होकर लोगों का अभिवादन स्वीकार करते पहुंचे लोकार्पण स्थल
Report manpreet singh
Raipur chhattisgarh VISHESH रायपुर 28 दिसंबर 2023/मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के मुख्यमंत्री बनने पश्चात आज प्रथम जशपुर आगमन हुआ। उन्होंने शहर के कॉलेज रोड में बस स्टैंड के समीप नवनिर्मित सौरभ सागर द्वार का लोकार्पण किया। इस दौरान मुख्यमंत्री श्री साय हेलीपैड से खुली गाड़ी में सवार होकर लोगों का अभिवादन स्वीकार करते लोकार्पण स्थल तक पहुंचे। जशपुर के माटी पुत्र मुख्यमंत्री श्री साय के मुख्यमंत्री बनने पश्चात जशपुर आगमन पर नगरवासियों ने पुष्प वर्षा से उनका स्वागत किया। नगरवासियों ने बड़े ही उत्साह और उमंग के साथ मुख्यमंत्री का अभिनंदन किया। इस दौरान ग्राम चड़िया के उरांव समाज के करमा नर्तक दलों द्वारा मांदर की ताल पर सुंदर करमा नृत्य प्रस्तुत कर मुख्यमंत्री का स्वागत किया गया। दीक्षा उपरांत जैन आचार्य सौरभ के 28 वर्षों पश्चात वर्ष 2012 में जशपुर आगमन के समय उनके द्वारा प्रवेश द्वार की नींव रखी गई थी। जैन धर्म के संत सौरभ सागर के नाम पर निर्मित इस प्रवेश द्वार का लोकार्पण जशपुर के माटी पुत्र मुख्यमंत्री श्री साय के हाथों होने पर नगरवासियों में खुशी की लहर छा गई। इस द्वार का निर्माण राजस्थान के लाल पत्थर से हुआ है। नगरपालिका ने पार्षद मद से 8 लाख रूपये की लागत से सौरभ सागर द्वार का निर्माण कराया है। जैन धर्म के संत सौरभ सागर के नाम पर निर्मित इस प्रवेश द्वार का लोकार्पण जशपुर के मुख्यमंत्री के हाथों होने को लेकर भी शहरवासियों में खासा उत्साह देखने को मिला। सौरभ महाराज ने जैन आचार्य बनकर पूरे अंचल को गौरान्वित किया है। उन्होंने जनसेवा को अपने जीवन का ध्येय बनाया है।
जैनाचार्य श्री सौरभ सागर का जैन मुनि बनने का सफर –
आचार्य श्री सौरभ सागर महाराज (श्री सुरेन्द्र जैन) का जन्म जशपुर के प्रतिष्ठित व्यवसायी श्री श्रीपाल के घर 22 अक्टूबर 1970 को हुआ था। महज साढ़े 12 साल की उम्र में आचार्य श्री 108 पुष्पदंत सागर जी महाराज से दीक्षा लेकर आध्यात्म की दुनिया में प्रवेश कर गए। 10 अप्रैल 2022 को कठिन साधना के बाद द्रोणगिरी में आचार्य पद पर आसिन हुए।