उत्तम खेती मध्यम वान करे चाकरी कुकुर निदान – पर आज कल नौकरी को सबसे उत्तम , व्यवसाय को मध्य , और कृषि कार्य को कुत्ते के समान माना जाता है

रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष :

 संपादकीय- द्वारा बलवंत सिंह खन्ना :  मैंने कहीं पढ़ा था कि वर्षो पहले हमारे बड़े बुजुर्ग कहते थे “उत्तम खेती मध्यम वान करे चाकरी कुकुर निदान ” अथार्त खेती सबसे उत्तम कार्य ,मध्य में व्यवसाय एवं नौकरी को कुत्ते के कार्य समान माना जाता था। समय जैसे-जैसे आगे बढ़ा 21वी शताब्दी में आते आते यह पुरा उल्टा हो गया,अब नौकरी को सबसे उत्तम कार्य माना जाने लगा व्यवसाय आज भी मध्य में ही समझ जाता है और कृषि कार्य को आज कुत्ते के समान। आज हमारा शिक्षित समाज कृषि को या कृषि कार्य करने वाले व्यक्ति को निन्म दर्जे से देखते हैं। यही कारण है की आज युवा वर्ग केवल और केवल नौकरी के पीछे भाग रहे हैं और भागते-भागते जब वह थक जाता है तब कोई सा भी स्वरोजगार प्रारम्भ कर लेता है लेकिन अपने पैतृक जमीन में कृषि कार्य करना उसको मुनासिब नहीं लगता है । आज जब विश्व के बड़े बड़े विकसित देश कोरोना जैसे महामारी का शिकार हो रहा है, आज जब अनेक देशो में लोकडौन लगा हुआ है , लोगो का आपने घरो से बेवजह निकलना मना है, सभी उद्योग बंद पड़े हैं सभी कार्यालय बंद पड़े हैं। अगर चालू है तो वह है कृषि एवं कृषि आधारित कार्य क्योंकि  विज्ञान चाहे चाँद पर पहुच जाये या धरती के अंदर ब्रम्हांड की खोज क्यों न कर लें लेकिन शायद ही ऐसा कोई आविष्कार कर पाये जिसमे बिना कोई अनाज के बिना कोई खाद्य पदार्थ के सेवन किये इंसान की भूख मिटाया जा सके।हम चाहे कितना ही विकसित क्यू न हो जाएँ हमें अपने पेट की भूख शांत करने हेतु हमे अनाज/ खाद्य पदार्थ का सेवन करना ही होगा। आज जब हम सभी लोग अपने-अपने घरो में बंद हैं फिर भी हमे खाद्य सामग्री आसानी से उपलब्ध हो रहा है तो उसका मुख्य वजह है हमारे किसान जिनके अथक परिश्रम,अथक लगन से ही हम तक अनाज पहुच रहा है। वर्तमान वैश्वीकरण में हम अपने पैतृक कार्यो से सायद इतना दूर आ गये हैं की हमें केवल चकाचौंध वाली दुनिया ही दिखाई देती है। हम उस जमीन में खुद को मलिन नहीं करना चाहते हैं जिससे हमारा उदय हुआ है कृषि से प्रारम्भ होकर आज अनेक ज्ञान-विज्ञान के मदद से हम बहुत आगे तो निकल गे लेकिन धीरे- धीरे हम कृषि को छोड़ते गये पर आज भी अगर हम नहीं सुधरें तो सायद आने वाला समय और भयवाह हो, क्योंकि विज्ञान अभी तक भूमि का कृत्रिम निर्माण नहीं कर पाया है और जब हमारा पृथ्वी सिमित है तो इस वैश्वीकरण के समय में हमे कृषि उपज हेतु भूमि की आवश्यकता की पूर्ति हेतु भी सोचना होगा ताकि हमारे भविष्य भी सुरक्षित हो। और यह कहना बिलकुल गलत नहीं कि भविष्य में जिनके पास भी 1 बीघा जमीन होगा उनको एपीजे परिवार के अनाज हेतु कोई समस्या नहीं होगी। इसलिये चाहे हम कितने उच्च पदों में रहें कितने भी आर्थिक सम्बल परिवार से रहें हमे कृषि कार्य आना भी चाहिये एवं हर उस व्यक्ति का, परिवार का सम्मान करना होगा जो आज भी किसानी नहीं छोड़े हैं। अगर किसान और कृषि हैं तो हम हैं हमरा आज है और हमारा कल भी होगा । अगर केवल छत्तीसगढ़ राज्य की बात करें जिसे पूरा देश धान के कटोरा के नाम से जानते हैं जहां का कृषि एवं कृषि आधारित व्यवसाय का वर्तमान(2019- 2020) सकल राज्य घरेलु उत्पाद(GSDP) में लगभग 16.8% का हिस्सेदारी है। वह पिछले कई वर्षो से केवल शोषण का शिकार होते आया है। यहाँ के प्राकृतिक सम्पदा को केवल लूटा गया है, दोहन किया गया है अगर यहां के प्राकृतिक सम्पदा का 5% भाग भी केवल राज्य के विकास हेतु उपयोग में लाया गया होता तो आज राज्य की दशा और दिशा अलग  ही होती। राज्य के एक मात्र कृषि विश्वविद्यालय जहां के रिछारिया रिसर्च सेंटर में लगभग 10,2600.00 से भी अधिक धान के किस्मों का बीज संरक्षित है। कृषि अभियांत्रिकी हो, उद्यानकी हो, हर क्षेत्र में यहाँ के कृषि छात्रो ने, कृषि वैज्ञानिको ने अनेक खोज/ शोध किये हैं, उस राज्य में आज कृषि और किसानो की स्थिति बहुत पिछड़ गया है। आखिर क्या वजह रही की हम अपने मुख्य आजीविका से पिछड़ रहे हैं? कृषि को बढ़ावा देने हेतु तो अनेक योजनाये लाये गए लेकिन उसके क्रियान्वयन को सही नहीं रखा गया। न ही कृषि कार्य में लगे किसानो के भलाई के लिये कार्य किय गए, और न कृषि को बढ़ावा देने के लिये,  अगर कार्य किये गए तो वह था केवल किसानो का वोट बैंक के रूप में उपयोग करना। वर्षो से न ही कोई कोल्ड स्टोरेज बन सका न ही किसानो के लिये कोई खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित किया जा सका। और न ही किसानो को उसके उपज का उचित मूल्य दिया गया। वर्ष दर वर्ष किसानी लागत में तो बढ़ोतरी होते गयी लेकिन आमदनी में कमी आते गयी।यही कारण रहा की पिछले कई वर्षो में अनेक किसानो ने या तो आत्महत्या करने को मजबूर हुये या फिर कइयों किसानो ने खेती कार्य ही छोड़ दिये और प्रतिवर्ष यहाँ पलायन बढ़ता चला गया। शासन अपने स्तर में इसको छुपाने की भरपूर प्रयास करती रही लेकिन किसानो की दशा किसी से छिपी नहीं।यहाँ सरकार ने केवल अपना तिजोरी भरना चाहा और कृषि बजट को अनेक तरीको से भरष्टाचार कर के गबन करते गये। आज भी कई घटनाएं हैं जो न्यायलय में लबित है कई घटनाओ का तो शिकायत ही पंजीबद्ध नहीं हो पाता है। वर्तमान सरकार किसान हित में निश्चित ही कुछ बेहतर कार्य किये या कार्य प्रारम्भ किये गये जैसे की किसान कर्ज मुआफ़ी, फसलो का समर्थन मूल्य में वृद्धि, कोल्ड स्टोरेज एवं मंडी का निर्माण कार्य इसके अतिरिक्त वर्तमान सरकार का महत्वकांक्षी योजना गरुवा, घुरुवा अऊ बाड़ी का क्रियान्वयन निःशंदेह किसान हित में है । लेकिन यह निर्भर करता है योजनाओं के बेहतर क्रियान्वयन पर। आज समय आ गया है हमें अपनी ताकत को पहचानने की कृषि हमारे देश की हमारे राज्य की धड़कन है लगभग 70% से भी अधिक आबादी आज भी कृषि एवं कृषि आधारित व्यवसाय करती है। आगे हमें इसमें निरन्तरता बनाना है युवा वर्ग को व्यवसायिक कृषि के लिये शासन द्वारा प्रोत्साहित करना होगा ताकि हमारा कृषि रकबा में बढ़ोतरी हो,कृषि उत्पादन में बढ़ोतरी हो।              (लेखक बलवंत सिंह खन्ना, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर से समाज कार्य विभाग के पूर्व छात्र एवं युवा सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ स्वतन्त्र लेखक व सम-सामयिक मुद्दों के विचारक हैं।)

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