छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन की लापरवाही आई सामने , विभाग ने 7 करोड़ 40 लाख रुपए की एक्सपायर दवा फेकि एवं 11 लाख के इंजेक्शन भी हुए बर्बाद

रिपोर्ट मनप्रीत सिंग

रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष :  राजधानी रायपुर में आए दिन सरकारी विभागों द्वारा लापरवाही और अनियमितता के मामले आते रहते हैं। जहां वर्तमान में कोरोना जैसी महामारी के लिए देश मे रेपिड किट जैसी समस्याओं से जूझना पड़ रहा है वहीं अगर पिछले 5 वर्षों का आंकड़ा खंगालें तो सीजीएमएससी (छत्तीसगढ़ मेडिकल सर्विसेस कॉर्पोरेशन ) ने 7 करोड़ 40 लाख रुपए की एक्सपायर दवा फेंक दी है। कारण यह है कि दवाओं का जरूरत से अधिक स्टॉक रख लिया गया। जिसका उपयोग नहीं हो सका और नतीजन दवा बेकार हो गई। 

यह केस स्वास्थ्य विभाग की लापरवाही का सबसे बड़ा उदाहरण है। वहीं कोरोना की वजह से दवा क्षेत्र में काला बाजार भी गर्म हुआ है। जहां सेनिटाइजर और मास्क की अंधाधुंध बिक्री कारोबारियों ने मनमाने दाम पर की है। वहीं दूसरी दवाओं पर भी कोरोना का असर हुआ है। एक रिपोर्ट के मुताबिक रायपुर में  जेनरिक दवाओं में 50 फीसदी बढ़ोतरी हुई है।

2016 में खराब हुई 15 लाख की कैंसर दवा

वैसे तो एक्सपायर दवा को फेंकने के मामले पहले भी होते रहे, लेकिन वर्ष 2013 में सीजीएमएससी के गठन के बाद अस्पताल तक दवा की सप्लाई की जिम्मेदारी मेडिकल कॉर्पोरेशन को मिली। इसके बाद से दवा की बर्बादी का आलम शुरू हुआ। 2016 में आम्बेडकर अस्पताल ने 14 करोड़ रुपए की दवा खरीदी थी। जिसमें 15 लाख रुपए की कैंसर की दवा खराब हुई थी। साथ ही 10 लाख रुपए की एन्टी टिटनेस वेक्सीन भी बेकार हुई थी। जिसके लिए सीजीएमएससी और अस्पताल प्रबंधन ने एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराया था। उस समय आम्बेडकर अस्पताल के अधीक्षक डॉ विवेक चौधरी ने बताया था की सीजीएमएससी ने बिना डिमांड के दवा की सप्लाई की थी, जबकि सीजीएमएससी का दावा था की अस्पताल के द्वारा पत्र लिखकर ड्रग की डिमांड की गई थी। हैरानी की बात यह है की दोनों विभाग ने इस बारे में खुला स्पष्टिकरण नहीं किया था।

बर्बाद हुए 11 लाख के इंजेक्शन
2016 में ही आम्बेडकर अस्पताल में कैंसर की बीमारी पर उपयोग करने वाले ओमेगा-3 फैटी एसिड के 650 पैक इंजेक्शन की एक्सपायर डेट निकल जाने की वजह से ये सभी इंजेक्शन खराब हो गए थे जिसकी कीमत 11 लाख रुपए थी। वहीं 5 मिलीलीटर दवा के ऑक्सली प्लेसन के 300 इंजेक्शन भी उपयोग में नहीं लिए गए थे। जबकि ये वाटर 500 रुपए प्रति वायल की कीमत में बेचा जाता है। इस पर डॉ चौधरी ने कहा था की सीजीएमएससी द्वारा इतनी दवा का स्टॉक बनाया गया था जिसे करीब 20 साल तक उपयोग कर सकते थे।

26 हजार 133 वेक्सीन को फेंका गया
वर्ष 2016-17 में एन्टी टिटनेस वेक्सीन के 26 हजार 133 पैकेट का उपयोग न होने पर वे मेडिकल स्टोर में ही पड़े-पड़े खराब हो गए थे। जबकि ये दवा साढ़े चार करोड़ रुपए की कीमत से मंगाए गए थे। वहीं 2016 में अम्बेडकर अस्पताल का बजट 150 करोड़ रुपए था। जिसमे वित्तीय चालू वर्ष में 13 करोड़ रुपए पास किए गए थे। जिसमें 8 करोड़ जनरल सेक्सन व 5 करोड़ कैंसर दवा को दिया गया था। प्रबंधन ने केवल 65 करोड़ का खर्च किया था। बाकी के 85 करोड़ रुपए कहाँ उपयोग किये गए उसका भी डाटा दोनों विभाग के पास नहीं है। वहीं पिछले साल स्वाइन फ्लू के लिए 2 करोड़ रुपए के टेमी फ्लू टैबलेट खरीदे गए थे जिसमें से 25 लाख रुपए के टैबलेट एक्सपायर हो गए थे।

मर गईं थी 25 गाय
2018 में कारोबारियों ने एक्सपायर दवा को डूमरतराई के खुले मैदान में फेंक दिया था। जिससे नकारत्मक परिणाम सामने आए थे। दवा के असर से उस समय 25 गायों की मौत हो गई थी और इस मुद्दे से सदन भी गरमाया था। वहीं अन्य पशु भी दवा की चपेट में आए थे। इसके साथ ही सीजीएमएससी के 9 गोदामों में 28 टन एक्सपायर दवा के होने का भी दावा किया गया था। जिसकी कीमत 2 करोड़ से अधिक बताई गई थी।

बड़े हैं दाम
जेनरिक दवाओं के दाम 50 फीसद तक बढ़ गए हैं। इसकी वजह यह बताई जा रही है कि दवाओं के लिए अधिकांश कच्चा माल चीन से आता है, जो नहीं आ पा रहा है। जिन दवाओं के दाम में इजाफा हुआ है उनमें अधिकतर एंटीबायोटिक्स और पेनकिलर हैं। दवा कारोबारियों ने बताया कि अकेले छत्तीसगढ़ में हर महीने लगभग 100 करोड़ रुपये का ब्रांडेड दवाओं का कारोबार है। वहीं लगभग 25 से 30 करोड़ की जेनरिक दवाओं का व्यापार होता है। आपूर्ति न होने से दवाओं की कीमत बढ़ी है।

वर्सन

छत्तीसगढ़ थोक दवा बाजार के अनुसार देश में 500 से अधिक जेनरिक दवा बनाने वाली कंपनियां हैं। सभी कंपनियां अधिकतर एक्टिव फार्मास्यूटिकल इंग्रेडिएंट्स (कच्चा माल) चीन से आयात करती हैं। चीन में फैले कोरोना वायरस की वजह से भारत में जेनरिक दवाओं के लिए कच्चे माल की आपूर्ति नहीं हो पा रही है।

एक्सपायर दवाओं पर लगेगी रोक

पिछले कुछ सालों में एक्सपायर दवा के मामले सामने आए थे, जो एक प्रकार से विभाग की लापरवाही से हुए थे। इस बार सीजीएमएससी को निर्देश दिए गए हैं कि जरूरत से ज्यादा दवा का स्टॉक न बनाया जाए। वहीं अस्पताल को जितनी ड्रग की आवश्यकता है वह पत्र के माध्यम से सूचित करे।

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