SSP आरिफ शेख की जुबानी – अमिताभ बच्चन के लिए दीवानगी और गणित के उत्तरों को भी रटने की दिलचस्प कहानी

रिपोर्ट मनप्रीत सिंह

रायपुर छत्तीसगढ विशेष : सोशल मीडिया लॉकडाउन में वक़्त बिताने का सबसे अच्छा माध्यम बन चुका है। सोशल मीडिया में लोग अपने विचार और पुरानी यादें शेयर कर रहे हैं। रायपुर SSP आरिफ शेख ने भी फेसबुक पर संस्मरण पोस्ट किया है।

इस पोस्ट में उन्होंने अपने बचपन का एक किस्सा बताया है, कि कैसे सदी के महानायक अमिताभ बच्चन के फिल्म की शूटिंग देखने के जूनून ने उन्हें ट्यूशन और स्कूल बंक करने के लिए मजबूर कर दिया था।

पोस्ट में उन्होंने यह भी साझा किया है कि बचपन में उन्हें गणित का विषय बोर करता था और वो एक औसत दर्ज के छात्र हुआ करते थे। लेकिन कुछ ठान लेने के बाद उसे पूरा करने का जूनून उन्हें बचपन से ही था।

SSP आरिफ शेख पोस्ट पर लिखते हैं-

चल चल री चल मेरी रामपियारी..मैं भी कुँवारा तू भी कुंवारी…रब ने बनाई जोड़ी हमारी….. यह गाना आपको सुना सुना सा लग रहा होगा। सदी के महानायक अमिताभ बच्चन की एक सुपर फ्लॉप फ़िल्म “अकेला” का यह सुदेश भोसले द्वारा गाया कर्कश गाना आप बहुत लोगों के स्मृतिपटल पर शायद अब तक आ चुका होगा। फ़िल्म में अमिताभ ने एक पुलिस अफसर का किरदार निभाया था, जिसकी एक पीली Bentley कार है जिससे वह काफी चाहता है, जो उसके इशारों पर चलती है, उसकी भावनाओं को समझती है। आज मुझे रह रहकर यह ख्याल आ रहा है कहीं james bond के Casino royale वाली Aston Martin शायद रामपियारी से तो प्रभावित नहीं हुई थी खैर… अमिताभ को इस फ़िल्म से बहुत आस थी लेकिन तूफान, जादूगर जैसी घटिया फिल्मों ने जो उनकी नैय्या में छेद किये थे उसमें और एक बड़ा गड्ढा इस फ़िल्म ने खोद दिया।

पिछले डेढ़ दशक से अमिताभ का pheonix rise किसी परिकथा से कम नहीं। अमिताभ बच्चन का तब भी जलवा था और अकेला के 30 साल बाद आज भी कायम है । तो बात है 1990 कि जब मैं सातवी कक्षा में पढ़ता था। सही बोलो तो वह समय काफी दुखदर्दी वाला था। गणित का बहुत बुरा हाल था। Unit test और semester परीक्षा में गणित में मैं साफ fail हो चुका था दूसरे विषयो में भी स्तिथि कुछ खास नहीं थी। मुझे इसलिए एक ट्यूशन में भेजा जा रहा था, जो मेरे घर से 10 km दूर भण्डारवाड़ा में स्थित था। भण्डारवाड़ा मेरे स्कूल के बगल में था लेकिन उस ट्यूशन में मेरा मन कभी नहीं लगा।

सब Intelligent छात्रों के बीच मैं एक “अकेला”ही mediocre था। माजरा तो यह था कि गणित के प्रश्नों के उत्तर भी मैं रट के परीक्षा में जाता था लेकिन प्रश्न ही भूल जाता था। घर आके जब cross check करता तब अहसास होता कि “लग गयी है”। इस कठोर जीवन के बीच एक सुखद ठंडी हवा का झोंका तब आया जब हमारे घर के करीब चन्द दूरी पर अकेला की शूटिंग हुई। जिस वजह से कम से कम हफ्ते भर के लिए ही क्यों ना सही मेरे जीवन से नैराश्य चला गया। अब दोपहर में स्कूल से आने के बाद फिर वापस ट्यूशन जाने में अब बिल्कुल ही मन नहीं लग रहा था (वैसे मन तो पहले ही नही लगता था)। अमिताभ की एक झलक पाने मैं पहले दिन जैसे तैसे क्लास पूरी कर के पोहचा तब तक पैक-अप हो चुका था। दूसरे दिन मैंने यह निश्चय किया कि जो हो जाये शूटिंग तो मैं देख के ही रहूंगा।

मैंने दोपहर का ट्यूशन बंक करने की योजना बनाई, लेकिन दिक्कत यह थी कि उस दिन ट्यूशन में Test भी था, लेकिन अमिताभ से बढ़कर थोड़ी था गणित। घर से दोपहर खाना खाके revison का नाटक करते हुए बाये जाने के बजाय दाहिने मोड़ लेते हुए मैं सीधे पोहचा जोगेश्वरी ओवर ब्रिज के नीचे। वहां पर आसानी से 2-3 हजार लोग जमे हुए थे। ब्रिज के पास खड़ी थी एक मर्सेडीज़ की कारवां और उसमें थे सुपर स्टार अमिताभ। ब्रिज के ऊपर एक पीले कलर की एक डुकर फ़िएट (रामपियारी)खड़ी थी और एक पुलिस वाले को एक अंग्रेज कलाकार (Kieth Stevenson, जिसने बाद में टीपू सुल्तान में लार्ड कॉर्नवॉलिस का किरदार निभाया था) पीट रहा था। उस scene के लगभग 10 टेक हुए लेकिन बच्चन साहब गाड़ी के बाहर निकलने तैयार नही हुए। उस अलौकिक माहौल में भी मेरे अंदर एक मायूसी थी क्यो की 2 घंटे बिट चुके थे और “भगवान” के दर्शन नही हुए थे। अंधेरा होने को था तब अचानक caravan का दरवाजा खुला और काले कपड़ो में अमिताभ नीचे उतरे और फिर एक सीन फिल्माया गया। अमिताभ की एक झलक पा के मेरा हाल वही था जो Slumdog millionaire में जमाल मालिक का था। ना चाहते हुए भी मुझे तुरन्त घर लौटना था, ट्यूशन तो मैं मिस कर ही चुका था और अब शूटिंग भी। लेकिन extraordinary situation calls for extraordinary measures, पता चला अगले दिन शूटिंग खत्म होने वाली है तब मैंने यह निर्णय लिया कि अब तो स्कूल ही बंक किया जाए क्योंकि अमिताभ तो अमिताभ है। दूसरे दिन सुबह 7 बजे स्कूल के बजाय सीधे पहुंच गया ब्रिज के पास और इंतज़ार करते रहा। शूटिंग वाले स्पॉट बॉयज 9 बजे के आसपास आये।

कुछ पुलिस वाले भी आ गए थे, कुछ एक ने पूछा भी स्कूल छोड़ यहां क्या कर रहे हो तब मैंने सच्चाई बता दी। कुछ एक का दिल पसीजा और मुझसे वादा किया मिलवा देंगे बच्चन साहब से। मैं बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था उनके आने का, 12 बजे कारवां की एंट्री हुई और अपने निर्धारित स्थान पर खड़ी हो गयी। पुलिस वालों ने घेरा बना लिया , बच्चन साहब इस बार कारवां के बाहर एक कुर्सी पर बैठे और एक सुनहरी कंगी से अपने बाल बनाने लगे, मेकअप मैन मेकअप करने लगा। मैं औरो की तरह कोशिश कर रहा था उनके करीब जाने की। उस धक्का मुक्की में एक आरक्षक जिसने मुझसे वादा किया था उसने मुझे पहचाना और मुझे अंदर घुसा दिया। मैं अब सदी के महानायक के बिल्कुल पास खड़ा था, उन्होंने मुझे देख पूछा स्कूल नही गए…मैं अब तक होश हवास खो चुका था। ख़ुद को संभालते हुए मैंने मेरी गणित की नोटबुक उनको दी जिसे मुझे ऑटोग्राफ मिल गया। मैं सातवें आसमान में था उस वक्त पहली बार जो चाहिए वो हासिल किया था , ये बात और है कि unit test 2 में भी मैं गणित में fail हो गया लेकिन fail होने वाला मैं ” अकेला ”  नहीं था 

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