एक सत्य कथा पर आधारित नारी तू अन्नपूर्णा , कृत महेश राजा

कृत :  महेश राजा 

रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष :   अरूण कुमार जी एक बहुत बडी़ कंपनी में आफिसर थे।वे हमेंशा दौरे पर ही रहते।कार,ड्राइवर और वे।उनके जीवन का अधिक तर समय दौरे में ही बीता।कभी रेस्ट हाउस में रूकते,कभी किसी बडी़ सी होटल में।भोजन अक्सर बाहर होता।

    सप्ताह दो सप्ताह में घर पर रहते तो भी भोजन  बाहर ही होता।आदत थी।

   उनकी श्रीमति सुधाजी कुशल गृहिणी थी।एक प्यारा सा बच्चा भी था। उन्होंने पति की इन आदतों से समझौता कर लिया था,कभी कोई शिकायत न करती।

    एकाएक इस महामारी ने आ  घेरा।संपूर्ण लाकडाउन हुआ।अरूण जी को भी घर पर रह कर काम करना पड़ा।

   एक दो दिन तो बड़े बूरे बीते।घर पर रहने की आदत जो न थी।सुधाजी और बच्चे को बड़ा भला लगा।सुधाजी रोज नये नाश्ते और भोजन बनाती।

   अरूण जी मुँह बिगाड़ते।खाते और कार्य करते रहते।इक्कीस दिन का लाकडाउन  फिर बीस दिन और बढ़ाया गया।

    अब धीरे धीरे उन्हें घर का भोजन भाने लगा।बहुत प्यार से खाने लगे।बीच में तारीफ भी करते।सुधाजी मुस्कुरा देती।

   घर पर रह कर अरूण जी ने महसूस किया एक गृहिणी को कितना काम करना होता है।फिर भी बिना शिकायत वे हँसते हँसते करती रहती है।और पुरूष कभी इस बात की कदर नहीं करते।

    एक रात , जब सुधाजी उनके लिये गरम दूध लेकर आयी।पास बैठाया।गले लगाकर माफी मांगी,कहा-“,प्रिये ,आज तक मैंने तुम्हारी कद्र ही नहीं की।सिर्फ़ अपने काम में जुटा रहा।परंतु पिछले दिनों मैंने महसूस किया कि नारी क्या होती है?।उसके बिना पुरूष अधूरा होता है।
 नारी में कितनी शक्ति होती है।वे अपनी घर गृहस्थी को सजाने,सँवारनें में अपना जीवन लगा देती है।”

    -“इन दिनों मैंने घर पर रह कर तुम्हारे हाथों बने व्यंजनों का स्वाद चखा तो महसूस हुआ कि पिछले बरसों में मैंने क्या कुछ खो दिया है।तुम साक्षात अन्नपूर्णा हो।तुम्हारे हाथों में तो जादू है।अब इस बात को मैं कभी नहीं भूलूंगा।”

 -”  इस अवसर पर एक वादा करता हूँ, जैसे ही हालात ठीक होंगे,मैं छुट्टी ले लूंगा।हम तीनों एक साथ  कहीं  एकांत मेंरहेंगे।पिछले दिनों की भूल का मुझे प्रायश्चित  जोकरना है।”

सुधा जी  बस चुपचाप मुस्कुराती रही।।

……
*महेश राजा*,वसंत 51/कालेज रोड़।महासमुंद।छत्तीसगढ़।

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