अधिकारियों की ट्रांसफ़र-पोस्टिंग के मामले में सुनवाई करते सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया – अगर प्रशासन का पूरा नियंत्रण उसके पास है तो फिर दिल्ली में एक चुनी हुई सरकार का क्या काम

Report manpreet singh

Raipur chhattisgarh VISHESH अधिकारियों की ट्रांसफ़र-पोस्टिंग के मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से सवाल किया है कि अगर प्रशासन का पूरा नियंत्रण उसके पास है तो फिर दिल्ली में एक चुनी हुई सरकार का क्या काम है.

केंद्र और दिल्ली के बीच कामकाज को लेकर जारी खींचतान के बीच सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी को www.chhattisgarhvishesh.com ने अपने पहले पन्ने पर जगह दी l दिल्ली के कामकाज पर नियंत्रण को लेकर केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच तनातनी के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय संविधान पीठ सुनवाई कर रही है. इसकी अगुवाई प्रधान न्यायाधीश जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ कर रहे हैं.

पीठ ने केंद्र सरकार की ओर से मौजूद सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा, “अगर सारा प्रशासन केंद्र सरकार के इशारे पर ही चलाया जाना है तो फिर दिल्ली में एक निर्वाचित सरकार का क्या उद्देश्य है?” सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी तुषार मेहता की उस दलील के बाद आई जिसमें उन्होंने कहा, “केंद्र शासित प्रदेश को बनाने का एक स्पष्ट मक़सद ये है कि केंद्र इसका प्रशासन ख़ुद चलाना चाहता है. इसलिए सभी केंद्र शासित प्रदेशों को केंद्र के सिविल सेवा अधिकारी और केंद्र सरकार के कर्मचारी चलाते हैं.”

तुषार मेहता ने कहा कि अधिकारियों के कामकाज पर नियंत्रण और उनके प्रशासकीय या अनुशासन संबंधी नियंत्रण के बीच अंतर होता है. एक चुनी हुई सरकार के प्रतिनिधि के तौर पर अधिकारियों का कामकाज संबंधी नियंत्रण हमेशा मंत्री के पास रहता है. उन्होंने इसे स्पष्ट करते हुए बताया, “जब एक केंद्र सरकार के अधिकारी या आईएएस अधिकारी को दादरा और नगर हवेली में एक आयुक्त के तौर पर तैनात किया जाता है तो वो राज्य सरकार की नीतियों के हिसाब से चलता है.

वह अधिकारी किसी को लाइसेंस जारी करने के लिए संबंधित राज्य के व्यापार नियमों को मानेगा और मंत्री के प्रति जवाबदेह होगा. मंत्री नीति बनाएंगे, कैसे लाइसेंस देना और कैसे नहीं देना है, किन मापदंडों पर विचार करना है और मंत्रालय कैसे चलेगा. कार्य से जुड़ा नियंत्रण निर्वाचित मंत्री का होगा.”

तुषार मेहता ने कहा, “हमारा लेना-देना प्रशासनिक नियंत्रण से है. जैसे कौन नियुक्ति करेगा, कौन विभागीय कार्रवाई करता है, कौन ट्रांसफ़र करेगा. लेकिन वो अधिकारी गृह सचिव से ये नहीं पूछ सकता कि वो किसी को लाइसेंस जारी करे या नहीं. इसके लिए उसे मंत्रियों से ही पूछना होगा. ये दो अलग चीज़े हैं और कामकाज का नियंत्रण हमेशा संबंधित मुख्यमंत्रियों के पास ही होता है.”

इस पर हैरानी जताते हुए सीजेआई ने पूछा कि क्या इससे विषम स्थिति पैदा नहीं हो जाएगी. उन्होंने कहा, “मान लीजिए कि कोई अधिकारी अपना काम ठीक से नहीं कर रहा, दिल्ली सरकार की ये कहने में भी कोई भूमिका नहीं है कि इस अधिकारी की बजाय हमें कोई और अधिकारी चाहिए…देखिए कितना विषम हो सकता है ये….दिल्ली सरकार कहां है? क्या हम कह सकते हैं कि अधिकारी को कहां तैनात किया जाएगा, इस पर दिल्ली सरकार का कोई नियंत्रण नहीं, फिर वो शिक्षा विभाग हो या कहीं और.”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *