कानून सख्त हैं फिर भी मानव तस्करी के मामले बढ़ें

Report manpreet singh 

Raipur chhattisgarh VISHESH : राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग भारत में मानव तस्करी पर शोध करा रहा है. इस अध्ययन में कुछ मानव तस्करों की केस स्टेडी करने पर देखा गया कि वे किन परिस्थितियों और सबूतों के आधार पर निचली अदालतों से बच निकलते हैं। संस्था का कहना है कि ऐसे मामलों में शुरूआती दौर में तो पीडि़तों को कुछ निजी संस्थाओं और अर्धसरकारी संस्थाओं से मदद मिलती है लेकिन जैसे ही मामला दर्ज होता है, मदद मिलनी बंद हो जाती है। मानव तस्करी का कोई मामला दर्ज होने के बाद पीडि़ता का परिवार दबाव में रहता है, उन पर बार-बार केस वापस लेने का दबाव बनाया जाता है। यहां तक कि उन्हें गांव में रहना तक मुश्किल हो जाता है। कुछ स्वयंसेवी संगठनों के मुताबिक देश में मानव तस्करी के पीडि़तों की संख्या अस्सी लाख से ज्यादा हो सकती है, जिसका बड़ा हिस्सा बंधुआ मजदूरों का है। कोरोना संक्रमण काल में तो मानव तस्करी को लेकर स्थिति और बदतर हुई है।अधिकारियों का कहना है कि कोलकाता, गुवाहाटी, पूर्वोत्तर भारत के कुछ शहरों और दिल्ली तथा मुंबई जैसे शहरों में नौकरी दिलाने का लालच देकर गरीबों और जरूरतमंद लोगों को सीमा पार से लाने के लिए तस्करों ने कुछ नए तरीकों पर ध्यान केन्द्रित किया है। दरअसल कोरोना संक्रमण काल में रोजगार छिन जाने के चलते लोगों को लालच देकर सीमा पार से तस्करी के माध्यम से लाने के प्रयास किए जा रहे हैं। असम, बिहार इत्यादि बाढ़ प्रभावित इलाकों में भी मानव तस्कर सक्रिय हो रहे हैं।हाल ही में उड़ीसा हाईकोर्ट ने अपने आदेश में बेहद सख्त टिप्पणी करते हुए कहा है कि वेश्यावृति के लिए मानव तस्करी तो नशीले पदार्थों की तस्करी से भी अधिक जघन्य अपराध है। सरकार की एक सर्वव्यापी, आचारी, नैतिक और वेश्यावृत्ति विरोधी मुद्रा है लेकिन व्यवहार में कानून और उनके अमल के बीच एक व्यापक अंतर है, जिस कारण मानव तस्करी के मामलों में सजा की दर बेहद कम होती है। अदालत ने यह टिप्पणी कोलकाता से देह व्यापार के लिए लड़कियों की तस्करी के आरोप में पकड़े गए पंचानन पाधी नामक व्यक्ति की जमानत याचिका की सुनवाई के दौरान की थी। अदालत का कहना था कि संयुक्त राष्ट्र के पलेरमो प्रोटोकोल के मुताबिक राज्य का दायित्व है कि वह ऐसा पर्याप्त तंत्र बनाए ताकि अपराधियों पर मुकद्दमा चलाने के अलावा पीडि़तों को बचाया जा सके और ट्रैफिकिंग को रोका जा सके। अदालत द्वारा यह सुझाव भी दिया गया कि किसी अभियुक्त पर आरोप तय करते समय अदालतों को यूएन प्रोटोकोल में निर्धारित ‘मानव तस्करी’ की परिभाषा को ध्यान में रखना चाहिए।मानव तस्करी का धंधा कम समय में भारी मुनाफा कमा लेने का जरिया है। इसी लालच के चलते यह समाज के लिए गंभीर समस्या बन रहा है। ड्रग्स और हथियारों की तस्करी के बाद मानव तस्करी को दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा संगठित अपराध माना गया है और अगर बात एशिया की हो तो भारत इस तरह के अपराधों का गढ़ माना जाता है। यह एक छिपा हुआ अपराध है,देह व्यापार से लेकर बंधुआ मजदूरी, जबरन विवाह, घरेलू चाकरी, अंग व्यापार तक के लिए दुनिया भर में महिलाओं, बच्चों व पुरूषों को खरीदा व बेचा जाता है और आंकड़ों पर नजर डालें तो करीब 80 फीसदी मानव तस्करी जिस्मफरोशी के लिए ही होती है जबकि शेष 20 फीसदी बंधुआ मजदूरी अथवा अन्य प्रयोजनों के लिए। इसे रोकने सारे अम्लों को और सख्त करने की जरुरत है.

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