उम्र  बनी  अड़चन कृत महेश राजा

रिपोर्ट मनप्रीत सिंह

रायपुर छत्तीसगढ़ विशेष :  पानी पीने वे रसोई  में पहुंँचे ही थे कि खिड़की से पड़ौस के कमलभाई ने आवाज दी,-“भाभीजी,भैया किचन में क्या पका रहे है?”

   उनकी श्रीमति जी झट से बोली-“ये और ,किचन के  काम।भूल जाईये भाई साहब…इनको तो ठीक से गैस चालू करना भी नहींँ आता।हाँ,कभी -कभी जब चाय चढ़ी रहती है,तो चाय मसाला ड़ाल देते हैं या सब्जी पक रही होती है तो अधिक लालमिर्च ड़ाल देते है।”

   कमल जी हँसे-“सभी पुरूषों का यही हाल है ,भाभीजी।

    यह सब सुनकर उनके भीतर एक हीन भावना ने जन्म ले लिया।महामारी के रहते लाकडाउन चल रहा है,सभी पुरूष घर पर ही थे।महिलाओं का काम और भी बढ़ गया था।

    मन में विचार आया कि पत्नी जी तो रेसिपी राईटर है,क्यों न समय का सदुपयोग करते हुए कुछ सीख लिया जाये।पत्नी की कुछ मदद भी हो जायेगी।पत्नी जी से कहा तो वे टाल गयी,रहने भी दिजिये,पता है न.. एक बार प्याज काटते हुए अपनी ऊंगलियाँ काट ली थी।
  आपको कुछ खाने का मन हो तो शैलेन्द्र चोपड़ा भैया मस्त समौसे,आलूचाप बनाकर होम डिलेवरी करवातें हैं मँगवा लिया करें।

  दरअसल घर में सबसे छोटे होने के कारण ,पहले माँ फिर बहन और बाद में पांँच पांँच भाभीयों के लाड़ -प्यार ने उन्हें घर का कोई काम करने ही नहीं दिया।पढ़ाई करते रहे और खाते रहे।कभी अवसर ही न मिला कि सीख सकें।पत्नी जी भी ऐसी भली मिली कि पानी का गिलास भी हाथ से न ले पाते। माँगने से पहले ही हाजिर हो जाता।चाय बनाना भी नहीं सीख पाये थे।

     दोपहर भर इसी बात पर विचार करते रहे  कि  टी.वी. पर सभी सेलीब्रिटी’ ज कभी कपड़े,कभी बर्तन धोकर या कभी कोई रेसिपी बनाकर वीड़ियो शेयर कर रहे थे और वाहवाही लूट रहे थे।कल ही टी.वी. पर श्री. श्री. जी ने भी कहा था कि पुरुषों को घर के काम में हाथ बँटाना चाहिये। 

   दिन,शाम सोचते  और रात भी इन्हींँ सपनों को देखते हुए बीती ,कि वे कभी समौसे बना रहे है या ब्रेड़ पकौड़े;भरवाँ बैंगन बना रहे है या तो मटर पनीर।सब ऊंगलियांँ चाट-चाट कर उनके बनाये व्यंजन की तारीफ़ कर रहे है।अनेक महिला पत्रिकाओं में उनकी रेसिपी को प्रथम पुरस्कार मिला है।सभी उनसे व्यंजनों पर आलेख लिखने को कह रहे है ;ईत्यादि।

   सुबह उठे.पत्नी से कुछ कहना चाह  ही थे कि बेटे-बहुओं के फोन आना शुरू हो गये।बड़ी कह रही थी-,हम सबके रहते और मम्मी जी के रहते आपको यह सब करने की  क्या जरूरत है पापा जी, बैंगलोर आ जाईये।तरह तरह के व्यंजन बना कर खिलाऊंगी।छोटा कह रहा था -” क्या पापा,इस उम्र में ,..यह सब —यह प्रयोग रहने ही दो…बड़ा बेटा भी नाराज हो रहा था।

दरअसल उनकी मम्मीजी ने सबको बता दिया था।उनकी सारी आशाओं पर तुषारापात हो गया।मन ही मन गुन रहे थे,कमबख्त उम्र बीच में आ गयी ,नहीं तो वे भी व्यंजनों के विशेषज्ञ हो सकते थे।अवसर भी उपयुक्त  था..।।।देश को एक संजीव कपूर या विक्रम बरार मिलते मिलते रह गया………….  

उक्त  लेख कृत  महेश राजा जी , वसंत 51/कालेज रोड़ , महासमुंद छत्तीसगढ़  का  है

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