राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, भारत ने ‘आशा कार्यकर्ताओं को सशक्त बनाना: सम्मान के साथ कार्याधिकार को सुरक्षित करना’ विषय के साथ महिलाओं पर कोर ग्रुप की बैठक का आयोजन किया
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी रामसुब्रमण्यम ने देश में नवजात और शिशु मृत्यु दर में उल्लेखनीय कमी का श्रेय आशा कार्यकर्ताओं की सेवाओं को दिया
केंद्र और राज्य सरकारों के बीच आशा कार्यकर्ताओं के कल्याण से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए सहयोगात्मक प्रयासों का आह्वान किया
सदस्य, न्यायमूर्ति (डॉ) बिद्युत रंजन सारंगी ने कहा- दूर-दराज के क्षेत्रों में चिकित्सा देखभाल की प्रथम पंक्ति के रूप में आशा कार्यकर्ताओं की स्वैच्छिक भूमिका को बेहतर तरीके से मान्यता दिए जाने की आवश्यकता है
महासचिव श्री भरत लाल ने कहा- आशा कार्यकर्ताओं से संबंधित मुद्दों जैसे कार्यभार और अपर्याप्त संसाधनों का समाधान किए जाने की आवश्यकता
विभिन्न सुझावों के अंतर्गत प्रोत्साहन-आधारित भुगतान व्यवस्था को एक निश्चित वेतन और प्रदर्शन-आधारित लाभ में बदलने पर बल दिया गया
आशा कार्यकर्ताओं के लिए स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और दुर्घटना कवरेज प्रदान करने पर भी बल दिया गया
Posted On: 21 FEB 2025 11:54AM by PIB Delhi
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी), भारत ने नई दिल्ली स्थित अपने परिसर में ‘मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा) को सशक्त बनाना: सम्मान के साथ कार्याधिकार को सुरक्षित करना’ विषय पर महिलाओं के लिए हाइब्रिड मोड में एक कोर ग्रुप की बैठक का आयोजन किया। इस बैठक की अध्यक्षता राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी. रामसुब्रमण्यन ने की। इस अवसर पर सदस्य न्यायमूर्ति (डॉ) बिद्युत रंजन सारंगी, महासचिव श्री भरत लाल के साथ-साथ आयोग के वरिष्ठ अधिकारी, विशेषज्ञ और आशा कार्यकर्ता उपस्थित थे।
एनएचआरसी के अध्यक्ष न्यायमूर्ति श्री वी. रामसुब्रमण्यन ने प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए देश में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में सुधार के लिए पिछले 20 वर्षों में आशा कार्यकर्ताओं द्वारा किए गए उल्लेखनीय योगदान की जानकारी दी। उन्होंने कहा कि आशा कार्यकर्ताओं की सजगपूर्ण सेवाओं के कारण नवजात और शिशु मृत्यु दर को कम करने में उल्लेखनीय प्रगति मिली है। आशा कार्यकर्ताओं ने दिखाया कि औपचारिक शिक्षा के बिना भी व्यक्तियों को कुशल श्रमिक बनने के लिए प्रशिक्षित किया जा सकता है। श्री वी. रामसुब्रमण्यन ने कहा कि आज शिक्षित लोगों की संख्या बहुत अधिक है, लेकिन कुशल श्रमिकों की संख्या कम हो रही है। आशा योजना के माध्यम से इस अंतर को दूर किया जा रहा है। हालांकि, उन्होंने बताया कि आशा कार्यकर्ता कहती रही हैं कि उनका पारिश्रमिक समाज में उनके योगदान के अनुपात में नहीं है। विडंबना यह है कि कई बार जो सबसे अधिक योगदान देते हैं, उन्हें सबसे कम मिलता है; जो वंचित समाज की देखभाल करते हैं, वे खुद हाशिए पर चले जाते हैं।
न्यायमूर्ति रामसुब्रमण्यम ने कहा कि सार्वजनिक स्वास्थ्य और न्यूनतम मजदूरी तय करना राज्य का विषय है। जनसंख्या नियंत्रण और परिवार नियोजन समवर्ती सूची में आते हैं। इसलिए, आशा कार्यकर्ताओं के कल्याण से संबंधित मुद्दों के समाधान के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सहयोगात्मक प्रयास होना चाहिए। उन्होंने आशा कार्यकर्ताओं की कार्य स्थितियों और जीवन स्तर में सुधार के लिए एक सशक्त नीति बनाने और कार्रवाई योग्य उपाय किए जाने का भी आह्वान किया।
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एनएचआरसी, भारत के सदस्य न्यायमूर्ति (डॉ) बिद्युत रंजन सारंगी ने कहा कि आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं और बच्चों से संबंधित किसी भी संकट के लिए चिकित्सक से परामर्श करने से पूर्व ही ग्रामीण क्षेत्रों में सबसे पहले पहुंचती हैं। इसलिए, कार्यकर्ता के रूप में उनकी भूमिका को पर्याप्त प्रोत्साहन, प्रतिपूर्ति और सुरक्षा के साथ बेहतर ढंग से पहचाना जाना चाहिए ताकि उनके सम्मान के साथ जीवन-यापन के अधिकार को सुनिश्चित किया जा सके।
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इससे पूर्व, बैठक का एजेंडा निर्धारित करने के साथ-साथ पृष्ठभूमि प्रदान करते हुए, महासचिव श्री भरत लाल ने तीन तकनीकी सत्रों के विषय के बारे में बताया। इनमें ‘आशा कार्यकर्ताओं के सामने आने वाली चुनौतियों की उभरती प्रकृति’, ‘अधिकारों की रक्षा और उनके संवर्धन में सरकार की भूमिका’ के साथ-साथ ‘भविष्य का मार्ग: आशा कार्यकर्ताओं के लिए सम्मान के साथ कार्याधिकार को सुनिश्चित करना शामिल है। उन्होंने कहा कि सरकार महिला सशक्तिकरण के लिए कई योजनाएं लेकर आई है और प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा में आशा कार्यकर्ताओं के योगदान को देखते हुए, उनके कम मानदेय, अत्यधिक कार्यभार और अपर्याप्त संसाधनों जैसे मुद्दों पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। उन्होंने कोविड-19 के दौरान फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में उनकी अनुकरणीय भूमिका की भी सराहना की जिसे विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी स्वीकार किया है।
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बैठक के दौरान मुख्य वक्ताओं में स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय की संयुक्त सचिव श्री सौरभ जैन, महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की संयुक्त सचिव सुश्री पल्लवी अग्रवाल, जेपीगो इंडिया की वरिष्ठ सलाहकार डॉ श्वेता खंडेलवाल, द नेशनल अलायंस ऑफ वीमेन (एनएडब्ल्यूओ) की अध्यक्ष सुश्री रूथ मनोरमा, जामिया इस्लामिया विश्वविद्यालय के सरोजिनी नायडू महिला अध्ययन केंद्र की प्रोफेसर और निदेशक डॉ सबीहा हुसैन, यूएन विमेन इंडिया की राष्ट्रीय समन्वयक सुश्री वैशाली बरुआ, अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय की विजिटिंग प्रोफेसर सुश्री दीपा सिन्हा, आशा वर्कर्स एंड फेसिलिटेटर्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एडब्ल्यूएफएफआई) की सचिव सुश्री सुरेखा, हरियाणा, एनएचआरसी, भारत महानिदेशक (आई) की आशा कार्यकर्ता सुश्री सुनीता, रजिस्ट्रार (कानून) श्री आर. प्रसाद मीणा, निदेशक जोगिंदर सिंह और लेफ्टिनेंट कर्नल वीरेंद्र सिंह शामिल थे।
बैठक के दौरान हुए विचार-विमर्श में निम्नलिखित सुझाव दिए गए;
• आशा कार्यकर्ताओं को निश्चित मासिक पारिश्रमिक, सामाजिक सुरक्षा, पेंशन, सवेतन अवकाश आदि के साथ औपचारिक कार्यकर्ता का दर्जा देने पर विचार करने की आवश्यकता;
• राज्यों में मानदेय/मजदूरी का मानकीकरण, यह सुनिश्चित करना कि मानदेय न्यूनतम मजदूरी नियमों के अनुरूप हो;
• प्रोत्साहन-आधारित भुगतान संरचना को एक निश्चित राशि और प्रदर्शन-आधारित लाभ के साथ बदला जाए;
• आशा कार्यकर्ताओं को स्वास्थ्य बीमा, मातृत्व लाभ और दुर्घटना कवरेज प्रदान किया जाए;
• क्षेत्र के दौरे के दौरान निशुल्क व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई), परिवहन भत्ते और स्वच्छ-सुगम क्षेत्रों तक पहुंच सुनिश्चित की जाए;
• उत्पीड़न और हिंसा के खिलाफ सख्त नीतियां लागू करते हुए सभी क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं के लिए सुरक्षित कार्य स्थितियां सुनिश्चित की जाएं;
• बाल देखभाल, बुजुर्गों की देखभाल और आशा कल्याण के लिए भवन और अन्य निर्माण श्रमिक कल्याण उपकर अधिनियम से अप्रयुक्त निधियों में से 49,269 करोड़ रुपये (2022 तक) का उपयोग किया जाए;
• प्रारंभिक बचपन देखभाल और स्वास्थ्य देखभाल श्रमिकों के प्रशिक्षण को मजबूत करने की दिशा में 70,051 करोड़ रुपये के स्वास्थ्य क्षेत्र अनुदान आवंटित किए जाएं;
• प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों और सामुदायिक केंद्रों पर राज्य-वित्त पोषित क्रच स्थापित किए जाएं ताकि आशा कार्यकर्ताओं को समर्थन दिया जा सके जो घर पर प्राथमिक देखभालकर्ता भी हैं;
• आशा कार्यकर्ताओं के लिए उच्च-भुगतान वाली स्वास्थ्य देखभाल भूमिकाओं जैसे नर्सिंग, दाई और सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रशासन में व्यवस्थित करियर का मार्ग सुनिश्चित किया जाए;
• रोग निगरानी, मानसिक स्वास्थ्य परामर्श और आपातकालीन चिकित्सा प्रतिक्रिया में नियमित कौशल वृद्धि प्रशिक्षण प्रदान किया जाए;
• औपचारिक स्वास्थ्य देखभाल भूमिकाओं के लिए आशा कार्यकर्ताओं को प्रमाणित करने के लिए मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के सहयोग से ब्रिज पाठ्यक्रमों का शुभारंभ किए जाए;
• कार्यस्थल बाल देखभाल समाधान की पेशकश करने वाले नियोक्ताओं के लिए कर लाभ के साथ, बाल देखभाल और बुजुर्ग देखभाल बुनियादी व्यवस्था में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहन दिया जाए;
और
• किफायती समुदाय-आधारित देखभाल सेवाओं का विस्तार करने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देते हुए आशा कार्यकर्ताओं के लिए अच्छे रोजगार के अवसरों का सृजन किया जाए।
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राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग इन सुझावों पर आगे चर्चा करने के साथ-साथ इनके बारे में अतिरिक्त जानकारी लेते हुए आशा कार्यकर्ताओं का कल्याण सुनिश्चित करने हेतु इस मामले पर विचार-विमर्श करेगा।
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