जयमरगा के गढ़पहाड़ की गुफा में प्रागैतिहासिक काल के हैं आदिमकालीन शैलचित्र

जशपुर से लगभग 30 किलोमीटर दूर मनोरा विकासखंड में स्थित है यह पुरातात्विक स्थल

Raipur chhattisgarh VISHESH जशपुरनगर, 04 नवंबर 2024/ जशपुर प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण तो है ही पुरातात्विक दृष्टिकोण से भी समृद्ध है। यहां की प्राकृतिक छटा सहज ही लोगों को आकर्षित करती है। यहां पर प्राकृतिक तौर पर निर्मित झरने, गुफाएं, पहाड़ों का आकर्षण ऐसा है कि पर्यटक खींचे चले आते हैं। इसी तरह की एक जगह है ग्राम जयमरगा का गढ़पहाड़। यहां पर प्राकृतिक तौर पर निर्मित गुफा में आदिमकालीन शैलचित्र मिले हैं। इससे पता चलता है कि आदिमानव यहां पर निवास करते रहे होंगे। उनकी बनाई कलाकृति आज भी यहां पर मौजूद हैं

घने जंगल पर चढ़ाई कर पहुंचा जा सकता है गुफा तक

जशपुर जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर दूर जयमरगा ग्राम है। ग्राम पंचायत डड़गांव का यह आश्रित ग्राम जयमरगा मनोरा विकासखंड के अंतर्गत आता है। ग्राम की आबादी लगभग 1400 है। इस ग्राम तक पहुंचने के लिए सड़कें बनी हुई है। जयमरगा पहुंचने पर यहां की गढ़पहाड़ पर लगभग 300 मीटर तक चढ़ाई करने के बाद इस गुफा तक पहुंचा जा सकता है। इस गुफा में ही आदिमकालीन शैलचित्र बने हुए हैं। ग्रामीण यहां पर पूजा भी करते हैं।
पुरातत्त्ववेत्ता डॉ. अंशुमाला तिर्की और बालेश्वर कुमार बेसरा ने बताया कि जयमरगा गाँव में प्रागैतिहासिक स्थलों की भरमार है। यहाँ पहाड़, जंगल और नदी के कारण प्रागैतिहासिक मनुष्यों के जीवन के लिए आवश्यक भोजन, पानी और आश्रय की उपलब्धता थी। इस गाँव में एक प्रागैतिहासिक शैलचित्र गुफा है, जहाँ मध्य पाषाण काल के उपकरण भी मिले हैं। शैलचित्र में मानव आकृतियाँ, पशु आकृतियाँ, ज्यामितीय आकृतियाँ और कुछ अज्ञात आकृतियाँ दिखाई देती हैं। ये चित्र लाल और सफेद रंग से बने हैं।
गुफा एक पहरेदारी की जगह जैसी प्रतीत होती है, जहाँ से प्रागैतिहासिक लोग शिकार के लिए जानवरों पर नज़र रखते थे। यहाँ हेमाटाइट पत्थर भी पाया जाता है, जिसका उपयोग रंग बनाने में होता था। इन चित्रों में कुछ प्रारंभिक काल के हैं और कुछ बाद के। यहाँ बैल, तेंदुआ, हिरण और मानव आकृतियाँ बनी हुई हैं। यहाँ माइक्रोलिथिक उपकरण जैसे लुनैट, स्क्रैपर, पॉइंट, ट्रैपेज, साइड स्क्रैपर, ब्लेड आदि भी पाए जाते हैं, जो शिकार और अन्य कार्यों के लिए प्रयोग किए जाते थे।

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