सम्पादकीय द्वारा-बलवंत सिंह: अकाल मे उत्सव

 

रायपुर छत्तीसगढ़ विषेश :

*अकाल मे उत्सव*

सम्पादकीय द्वारा-बलवंत सिंह: 

कोरोना काल जी हाँ अभी वर्तमान में कोरोना काल ही चल रहा है जहाँ पूरा विश्व कोरोना संक्रमण से लड़ रहा है। चीन के वुहान शहर से निकलकर यह महामारी पुरे विश्व में फ़ैल चूका है। चूँकि अभी तक इसका कोई ठोस इलाज नहीं मिल पाया है जिससे कोरोना को पूर्णरूप से समाप्त किया जा सके। अभी तक केवल सावधानी और स्वक्षता ही इसके फैलाव को रोकने में कारगर साबित हुई है। हम अगर भारत की बात करें तो यहाँ 22 मार्च को जनता कर्फ्यू तत्पश्चात 24 मार्च से लॉक डाउन है। हमने जिस प्रकार लॉक डाउन  के समय शासन-प्रशासन के निर्देशो का पालन(कुछ अपवादों को छोड़कर) किया है वह काबिले तारीफ है । इतनी बड़ी जनसंख्या वाले देश में कोरोना का फैलाव निन्त्रित है और उम्मीद है बहुत जल्दी हम इससे निजात पा लेंगे। आर्थिक स्थिति की बात करें तो अभी एक तरह का अकाल की स्थिति है चूँकि वर्तमान में हमारे पास साधन-संसाधन बेहतर है इसलिये हम उचित व्यवस्था के साथ बंद में भी सुचारू रूप से आगे बढ़ रहें हैं, भूख से बेहाल कुछ लोगो की दुखद मृत्यु की खबर अवश्य आई है जो दिल को झंकझोर देने वाली है। पर हम बात करे आजाद भारत की पहले आकाल की की तो 1960 के दशक में कई-कई सालो तक अकाल की स्थिति उत्पन्न हुई अगर ग्रामीण क्षेत्रो के बुजुर्गो से बात करो तब उस समय को याद कर के उनके आँखे नम हो जाती है। कैसे जब अनाज के लिये तिल-तिल कर लोग भूखे मर जाते थे
 चांवल का पानी, कन्द-मूल खाकर कई-कई रातें गुजार देते थे। तब के समय में न ही इतने  संसाधन हुवा करता था न ही शासन-प्रशासन द्वारा कोई राहत कार्य। कभी-कभी रोजगार चल भी जाए तो सभी को उपलब्ध हो पाना मुश्किल होता था।तब महीने दो महीने नहीं सालो तक अकाल का दन्स झेल चुके हैं। समय बीतते गया संसाधन बढ़ते गये और आज हम पिछले 41 दिनों से कोरोना महामारी से उत्पन एक प्रकार के अकाल का ही सामना कर रहे हैं। आज हमारे पास संसाधन ज्यादा है अनाज है, स्वास्थ्य सुविधाएं हैं,संचार है तकनीक है इन सब के बल बुते हम इस महामारी से कड़ाई से लड़ पा रहे हैं। इन सभी के अलावा हमारे पास सबसे बड़ा जनसमूह है जो हमेशा विषम परिस्थितियों में एकता का परिचय दिया है। शासन के अलावा आम से आम और खास से खास नागरिक भी इस महामारी से लड़ने हेतु अपनी सहभागिता दे रहे हैं। शारीरिक हो या आर्थिक सहायता हर क्षेत्र में लोग बढ़ चढ़कर सामने आएं हैं। प्रधानमन्त्री केयर फण्ड हो या मुख्यमंत्री सहायता कोष में 1 रूपये से लेकर करोड़ो रूपये तक लोगो ने बढ़चढ़ कर दान दिए हैं। इन सब में जो मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित की हैं ओ है श्रीमती राधिका साहू जी जिन्होंने 10 हजार रूपये मुख्यमंत्री राहत कोष में कोरोना से लड़ने हेतु दान किये मेरे नजर में यह दान और दान करने वाली महिला सबसे उच्च और महान है। ओ इसलिये की एक माह पूर्व ही इनके पति श्री उपेन्द्र साहू जी बस्तर में नक्सली मुठभेड़ के दौरान शहीद हो गए थे। यह सच में असली हीरो हैं जिस देश में ऐसे हीरो हों वह देश कभी कमजोर नहीं हो सकता। मगर इतने दान, सहायता के बाद इन राशियों का उपयोग अभी उचित तरीके से और उचित स्थान पर शायद नही हो पाया है जिस तरीके से होना चाहिये।इस विषम परिस्थिति में युद्ध स्तर में लड़ रहे हमारे चिकित्साकर्मीयों को मानसिक प्रोत्साहन ( जिस प्रकार देश के कुछ AIIMS में हेलीकाप्टर से पुष्पों की वर्षा किया गया इसमे कितनी राशि खर्च हुई होगी आप अंदाजा लगा सकते हैं) देना ठीक है हेलीकॉप्टर से अस्पताल परिषर में पुष्पों की वर्षा करना उचित था या नही यह आप अपने स्व विवेक से निर्णय ले सकते हैं, लेकिन लगभग 131 करोड़ की आबादी वाले देश के लिये केवल मानसिक प्रोत्साहन देना मुझे तो उचित नहीं लगता है। और अगर सम्मान देना है तो केवल चिकित्साकर्मियों को ही क्यू उन तमाम लोगो कप दीजिये जो इस लड़ाई में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लड़ रहे हैं। पुलिसकर्मी, सफाईकर्मी, नगरीय निकाय, मीडियाकर्मी और सबसे महत्वपूर्ण हमारे किसान परिवार जिनके मेहनत से ही हमे निरन्तरता खाद्य सामग्री उपलब्ध हो रहा है। उन सभी को सम्मान दीजिये। आज इस समस्या के निजात हेतु शासन स्तर में क्या तैयारी है,  स्वस्थ्य व्यवस्था में क्या तैयारी की गयी है, कितना सफलता मिला है, ऐसे परिवार जिनके घर की चूल्हा तब जलती है जब वह दिन में कमाई किया हो रोजी मजदूरी किया हो। ऐसे परिवार जो लघु उद्दोगों से अपना आमदनी करता हो, छोटे छोटे व्यवसायी वाले सब के आर्थिक स्थिति को सुदृण करने के लिये शासन के पास क्या क्या योजनाएं हैं। कर्ज में दबे किसानो के लिये क्या क्या राहत योजनाएं हैं। 1200+ व्यक्ति इस महामारी में अपनी जान गंवा चुके हैं उनके परिवारो के लिये क्या योजना है। ऐसे अनेक विषय जिसपर सरकार को बात रखना चाहिये। आज हर व्यक्ति सुनना/जानना चाहता है। हम सब को मिलकर इससे लड़ने की जरुरत है तो वही शासन के द्वारा अपने जनता के लिये किये जा रहे प्रयासों के बारे में जानने का पूरा अधिकार है।
2016 मे युवा साहित्यकार श्री  पंकज बसीर जी द्वारा लिखित साहित्य  *अकाल_मे_उत्सव* आज के परिदृश्य  से बिल्कुल मेल खाते दिखता  है  जिस प्रकार से अभी देश मे कोरोना महामारी के चलते आर्थिक समस्या गहराई है मानो आर्थिक अकाल आई हो ऐसे समय मे हेलिकॉप्टर से पुष्पो की वर्षा करना और जनता द्वारा केवल एक दिन मे ही 25000000 रुपए का शराब गटक जाना अभी कोरोना से हम लड़ रहें हैं लेकिन उत्सव मनाना नही छोड़ रहें।  लोग जहा दिल से गरीबो, जरूरतमंद का  सहायता कर रहें हैं वही केवल छत्तीसगढ़  मे 4 मई को जब 41 दिनो बाद शराब दुकान दोबारा  खुला तो एक ही दिन मे लगभग 250000000 रुपए का शराब पी गए। कोरोना महामारी जिस प्रकार से पूरे विश्व को अपने चपेट में लिया है सच मे यह  भयवाह है ।इतने लंबे समय से अपने घरों में कैद रहना शायद यह पृथ्वीलोक पर हुई पहली घटना हो। अभी हम इससे छुटकारा पाने में सफल नही हुए हैं केवल फैलाव की रोकथाम के लिये ही कार्य कर रहे हैं ताकि कम से कम लोगो मे इसका फैलाव हो और जब तक इसका उचित इलाज नही मिल जाता तब तक यह संघर्ष जारी ही रहेगा। इसलिये केंद्र और राज्य सरकार दोनो से ही निवेदन है कि सरकारी खजाना को उचित और योजनाबद्ध तरीके से  खर्च किया जाए।

लेखक बलवंत सिंह खन्ना, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय रायपुर से समाज कार्य विभाग के पूर्व छात्र एवं युवा सामाजिक कार्यकर्ता के साथ-साथ स्वतन्त्र लेखक व सम-समाइक मुद्दों के विचारक हैं।

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