“स्वराज हमारा जन्म सिद्ध अधिकार है इसे ले कर रहेंगे ” आओ याद करे उन बाल गंगाधर तिलक जी को उनकी 100वीं पुण्यतिथि पर आज (शताब्दी वर्ष) — छत्तीसगढ़ विशेष द्वारा विशेष लेख
Report manpreet singh
RAIPUR chhattisgarh VISHESH : महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की आज 1 अगस्त को 100वीं पुण्यतिथि (शताब्दी वर्ष) है। बाल गंगाधर तिलक (लोकमान्य तिलक) का मूल नाम केशव गंगाधर तिलक था। उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी के चिखली नामक गाँव में हुआ था। पिता का नाम रामचन्द्र गंगाधर तिलक पंत व माता का नाम पार्वती बाई गंगाधर तिलक था। इनके दादाजी पेशवा राज्य के एक उच्च पद पर आसीन थे। बाल गंगाधर तिलक का मुंबई में निमोनिया के कारण से अचानक ही मृत्यु हो गई थी।
लोकमान्य तिलक महान राष्ट्रभक्त ही नहीं, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतन्त्रता सेनानी थे। वे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के लोकप्रिय नेताओं में से एक थे. उन्हें, “लोकमान्य” का आदरणीय शीर्षक भी प्राप्त हुआ, जिसका अर्थ हैं लोगों द्वारा स्वीकृत (जन नायक के रूप में) हैं।
शिक्षा में खास योगदान
लोकमान्य तिलक आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी में से एक थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्कन शिक्षा सोसायटी की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे। उनकी गरमपन्थी विचारधारा ने तत्कालीन समय में तिलक युग की शुरुआत की थी। उन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन को एक नयी दिशा दी। उनका दिया हुआ नारा ”स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है, इसे हम लेकर रहेंगे”, भारतीय स्वाभिमान और गौरव का निश्चय ही प्रेरणास्त्रोत है
सन् 1871 में जब इनकी उम्र 15 वर्ष की थी तब उनका विवाह ताराबाई से हुआ। बाल गंगाधर की उम्र बहुत कम थी उस समय उनकी इच्छा शादी करने की नहीं थी। लोकमान्य तिलक जी ब्रिटिश राज के दौरान स्वराज के सबसे पहले और मजबूत अधिवक्ताओं में से एक थे। भारतीय अन्तःकरण में एक प्रबल आमूल परिवर्तनवादी थे। उनका मराठी भाषा में दिया गया नारा “स्वराज्य हा माझा जन्मसिद्ध हक्क आहे आणि तो मी मिळवणारच” (स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा) बहुत प्रसिद्ध हुआ। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कई नेताओं से एक क़रीबी सन्धि बनाई, जिनमें बिपिन चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय, अरविन्द घोष और वी० ओ० चिदम्बरम पिल्लै शामिल थे।
कुरीतियों को दूर करने किया ऐसा काम
लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से 1890 में जुड़े। तिलक ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने की दिशा में भी काम किया। वे अपने समय के सबसे प्रख्यात आमूल परिवर्तनवादियों में से एक थे। सन् 1889 में उन्हें बम्बई कांग्रेस का प्रतिनिधि चुन लिया गया।
पत्रकारिता में उल्लेखनीय योगदान, जेल जाना पड़ा
1881 में पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश कर ‘मराठा केसरी’ पत्रिका का संचालन किया । इसके माध्यम से जनजागरण व देशी रियासतों का पक्ष प्रस्तुत किया। ब्रिटिश सरकार की आलोचना के कारण उन्हें चार वर्ष का कारावास भी भोगना पड़ा। लोकमान्य तिलक ने अपने पत्र केसरी में “देश का दुर्भाग्य” नामक शीर्षक से लेख लिखा। जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों का विरोध किया। उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में 27 जुलाई 1897 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 6 वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा) जेल में बन्द कर दिया गया।
1916 में बाल गंगाधर तिलक ने होमरूल लीग की स्थापना की।इसका उद्देश्य स्वराज की स्थापना था। उन्होंने घर-घर जाकर लोगों को होमरूल लीग के उद्देश्यों को समझाया। जनता की गरीबी को दूर करने के लिए उनकी भूमि सुधार सम्बन्धी नीतियों की काफी आलोचना हुई।
सन 1919 ई. में कांग्रेस की अमृतसर बैठक में हिस्सा लेने के लिये स्वदेश लौटने के समय तक लोकमान्य तिलक इतने नरम हो गये थे कि उन्होंने मॉन्टेग्यू-चेम्सफ़ोर्ड सुधारों के द्वारा स्थापित लेजिस्लेटिव कौंसिल (विधायी परिषद) के चुनाव के बहिष्कार की गान्धी जी की नीति का विरोध ही नहीं किया। इसके बजाय लोकमान्य तिलक ने क्षेत्रीय सरकारों में कुछ हद तक भारतीयों की भागीदारी की शुरुआत करने वाले सुधारों को लागू करने के लिये प्रतिनिधियों को यह सलाह अवश्य दी कि वे उनके प्रत्युत्तरपूर्ण सहयोग की नीति का पालन करें। लेकिन नये सुधारों को निर्णायक दिशा देने से पहले ही 1 अगस्त,1929 ई. को बम्बई में उनकी मृत्यु हो गयी। मरणोपरान्त श्रद्धांजलि देते हुए राष्ट्रपिता महात्मा गान्धी ने उन्हें आधुनिक भारत का निर्माता कहा और पंडित जवाहरलाल नेहरू ने भारतीय क्रान्ति का जनक बतलाया।
तिलक ने की गणेशोत्सव की शुरूआत
महाराष्ट्र में गणपति महोत्सव एवं शिवाजी जयन्ती के भव्य तौर पर मनाए जाने के पीछे लोकमान्य तिलक का ही हाथ बताया जाता है। उन्होंने सार्वजनिक उत्सवों के जरिए लोगों को एकदूसरे से जोड़ने का काम किया। इस सार्वजनिक आयोजन के माध्यम से एकता का सन्देश लोगों तक पहुंचाया