श्राद्ध – सभी के पितरों को प्रणाम एवम्…

Report manpreet singh

Raipur chhattisgarh VISHESH : जिस प्रकार से राखी में बहन का महत्त्व, नवरात्र में महिलाओ का महत्व, भाईदूज में भाई का महत्त्व, हलछट में बेटे का महत्व, 15 अगस्त, 26जनवरी को राष्ट्र का महत्त्व, गुरुपूर्णिमा में गुरू का महत्त्व, महात्मा गांधी , सुभाष चंद्र बोस की पुण्यतिथी राष्ट्र के नायक का महत्त्व और आजकल के ढोंग ढकोसला में फ्रेंडशिप डे, रोज दे, फला डे,ढिंमका डे मनता है, वैसे ही हजारों वर्षो से अपने पूर्वजों पितृ के लिए मनाने वाला श्राद्ध हम भारतीयों की धार्मिक, वैज्ञानिक एवम् तार्किक सोच को परिलक्षित कर हमे गौरवान्वित करता है।

जब हम अपने पूर्वजों को मरने के बाद भी याद करते है तो बच्चों में एक संदेश जाता है की माता पिता कितने पूजनीय एवम् महत्वपूर्ण होते है जिसके कारण वे भी अपने जीवित माता पिता का सम्मान करते है । यह पद्धति कम होने के कारण ही भारत जैसे देश में आज वृद्धा आश्रम खुलने लगे है।

एक अटूट रिश्ता, प्रेम, महत्त्व व उनके कार्यकलाप के साथ उनके किस्से कहानी आदतों कार्यों को याद कर उन्हे पुनः स्मरण करने का यह 16दिन का पावन समय हमे अध्यात्मिक एवम सामाजिक व पारिवारिक उन्नति का बोध कराता है।

सामान्य रूप से किसी के श्राद्ध में जो भोजन के लिए बुलाए जाते है उनकी उम्र कद काठी, आचार विचार भी उन्ही पूर्वजों के समान होते है उन्ही को आमंत्रित किया जाता है, जो आने वाली नई पीढ़ी में अपने पूर्वजों के अक्स को देखने का मार्ग प्रशस्त करता है।

एक वैज्ञानिक पक्ष यह भी है की कौवे जैसे पक्षी जो पीपल बरगद के बीजों को अपने मल के द्वारा रोपते है उनके बच्चे अंडे से बाहर आने से का भी समय इसी दौर में होता है अतः जो भौजन कव्वो को पितृ के रूप में कराया जाता है वह उनके संतति उत्थान में सहायक सिद्ध होता है।

कुछ आधुनिक लोग इस पद्धति का मखौल उड़ाते भी सोशल मिडिया में दिखते है जो पितृ को भोजन कराने की व्यवहारिकता एवम् वैज्ञानिकता की प्रमाणिकता के आधार पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते है।वे मूर्ख यह भूल जाते है की हैप्पी फ्रेंडशिप डे या हैप्पी होली बोलने से किसी का शुभ नही होता परंतु वे हैप्पी वाली शुभकामना देकर अपने आप को सबसे उच्च शिक्षित मानने का झूंटा आडम्बर अवश्य करते है।

सभी के पितरों को प्रणाम एवम् उन सभी भारतीयों को प्रणाम जो अपने पूर्वजों का सम्मान पीढ़ियों दर पीढ़ी करते हुवे अपने देश की स्थानीय परम्परा को आज तक जीवित रखे हुवे है। ||विष्णु शर्मा||

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