उप राष्ट्रपति सचिवालय : भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा ने अंधकार में विश्व का मार्गदर्शन किया- उपराष्ट्रपति
वसुधैव कुटुंबकम ऋषि परंपरा का मूल सिद्धांत: उपराष्ट्रपति
पिछले एक दशक में ऋषि परंपरा का सम्मान बढ़ा: उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट में राष्ट्रीय संगोष्ठी को संबोधित किया
प्रविष्टि तिथि: 07 SEP 2024 7:06PM by PIB Delhi
उपराष्ट्रपति, श्री जगदीप धनखड़ ने वैश्विक दृष्टिकोण और राष्ट्र के मूल्यों को आकार देने में भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा के योगदान पर ज़ोर दिया। उन्होंने कहा कि ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ ऋषि परंपरा का मूल सिद्धांत है।
वैश्विक कूटनीति में भारत की महत्वपूर्ण भूमिका पर विचार प्रकट करते हुए, श्री धनखड़ ने कहा कि, “जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान दुनिया ने भारत के नेतृत्व को पहचाना जब हमारा ध्येय वाक्य ‘एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य’ था। जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट में आयोजित “आधुनिक जीवन में ऋषि परंपरा” विषय पर दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन समारोह को संबोधित करते हुए श्री धनखड़ ने कहा कि वसुधैव कुटुंबकम में हमारी ऋषि परंपरा का सार निहित है, जिसने सहस्राब्दियों से हमारा मार्गदर्शन किया है।
उन्होंने भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत में निहित दो प्रमुख सिद्धांतों को विश्व मंच पर पेश करने के लिए प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के दूरदर्शी नेतृत्व की सराहना की। उन्होंने प्रथम सिद्धांत को रेखांकित करते हुए कहा कि “भारत ने कभी भी विस्तारवाद की नीति का समर्थन नहीं किया अथवा दूसरों की भूमि के प्रति लालसा की भावना नहीं रखी”। वहीं दूसरा सिद्धांत की ओर इंगित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि किसी भी संकट में युद्ध समाधान नहीं है। उन्होंने कहा, “समाधान का केवल एक ही रास्ता है: बातचीत और कूटनीति।”
अस्थिरता और अनिश्चितता के दौर में मानवता का मार्गदर्शन करने में भारत के प्राचीन ज्ञान और आध्यात्मिक परंपराओं के वैश्विक प्रभाव पर टिप्पणी उपराष्ट्रपति ने कहा कि, “दुनिया के बड़े-बड़े लोग जब अशांति महसूस कर रहे थे, पथ से भटक गए, जब उन्हे अंधकार दिखाई दिया, तो उनका रुख भारत की तरफ हुआ। इस तकनीकी युग में भी, उन लोगों को मार्गदर्शन और रोशनी इसी देश में मिली।”
भारत की आध्यात्मिक एवं प्रौद्योगिकी प्रगति पर प्रकाश डालते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि, “हमारी ऋषि परंपरा की वजह से ही आज, भारत जल में, थल में, आकाश में और अंतरिक्ष में, बहुत बड़ी छलांग लगा रहा है।”
उपराष्ट्रपति ने कुछ व्यक्तियों द्वारा राष्ट्र के प्रति कर्तव्य की बजाय व्यक्तिगत एवं राजनीतिक हितों को प्राथमिकता देने पर चिंता व्यक्त की, उन्होंने कहा कि, “कई लोग गलत रास्ते पर चलकर धर्म को भूल जाते हैं, राष्ट्रधर्म को भूल जाते हैं, निजी व राजनीतिक स्वार्थ में अंधाधुंध कार्य करते हैं।” उन्होंने इस बात पर ज़ोर देते हुए कहा कि भारत की प्राचीन ऋषि परंपरा कभी भी इसकी इजाज़त नहीं देती है, “हजारों साल की पृष्ठभूमि में कोई भी शासन व्यवस्था हो, ऋषि के मुख वचन से जो निकल गया वो हमेशा निर्णायक रहा है। उसकी हमेशा अनुपालना हुई है। गत दशक में ऋषि परंपरा का पूरा सम्मान हुआ है।”
इस मौके पर जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य जी, कुलाधिपति, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग राज्य विश्वविद्यालय, चित्रकूट, श्री अनिल राजभर, श्रम एवं रोजगार, समन्वय मंत्री, उत्तर प्रदेश सरकार, श्री नरेंद्र कश्यप, राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पिछड़ा वर्ग कल्याण, दिव्यांगजन इस अवसर पर सशक्तिकरण, उत्तर प्रदेश सरकार एवं अन्य गणमान्य व्यक्ति भी उपस्थित थे।
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