गणेश स्थापना एवम् विसर्जन की व्यवहारिकता
Raipur chhattisgarh VISHESH
Report vishnu sharma : एक बच्चा जो किसी वस्तु, व्यक्ति या जगह से प्रेम करता है तो उसे उससे वंचित करने , वापस लेने या वहा से हटाने पर वह विरोध स्वरूप दुखी होकर रोने लगता है।जब मेरा बेटा छोटा था तो वह सोच भी नही सकता था की उसे जीवन में कभी भी अपने माता पिता को खोना पड़ेगा।
*एक घटना है …7वर्ष का बालक मेरे सुपुत्र खारुन नदी के पुल के ऊपर से एक बड़े गणेश की मूर्ति विसर्जन सन 20016में देख रहा था अचानक मूर्ति फिसली और भगवान गणेश की मूर्ति दो भागो में विभाजित हो गई…मेरा सुपुत्र फफक कर रो पड़ा पूछने पर रोते हुवे बोला की जै जै ( भगवान गणेश) को चोट लगी है वे टूट गए है।
मैंने अपने पर्स से पासपोर्ट फोटो निकाल कर उसे दिखाया और समझाया की इसको फाड़ देने से मुझे कोई फर्क नहीं पडेगा मैने मेरा फोटो फाड़ भी दिया… बालमन समझा परंतु घर में आने के बाद तक भी रोता रहा।*इस घटना को यहा बताने का उद्देश्य यह है की हम किसी भी मूर्ति स्थान या व्यक्ति के साथ जब भावनात्मक रिश्ते बना लेते है तो उससे बिछोह या डिटेच कभी नही होना चाहते।
छोटे बच्चे के सामने दादा दादी या नाना नानी के हमेशा के वास्ते चले जाना मान्य नहीं हो पाता उन्हे समझाना होता है की वे भगवान के घर गए है।उसी प्रकार से सनातन एवम् भारतीय परंपरा में जीवन – मरण के सत्य को व्यवहारिक रूप से समझने के वास्ते गणेश जी जो की सत्य के प्रतीक शिव के पुत्र है उनके आने 10 दिन तक उत्सव एवम आनंद के बाद विदाई ( विषर्जन) के द्वारा मानसिक रुप से समझ आने तक मन के तैयार करने की एक तार्किक एवम् व्यवहारिक पद्धति है।शिव एवम् शव के मध्य गणेश रूपी बुद्धि ,विवेक, रिद्धि ,सिद्धि ,ज्ञान को विसर्जित करना भी मानव जीवन का सत्य है यह सनातन के महत्व तार्किक तथा व्यवहारिक पक्ष को प्रबलता प्रदान करता है।ॐ नमः शिवाय, ॐ गण गणपतये नमो नमः ।। विष्णु शर्मा।।